बुधवार, 28 सितंबर 2011

असमा सूत्तरवाला के ऑडियो सी.डी. का विमोचन

(बाएं से उस्ताद नवाज़िश अली ख़ान, हातिम सूत्तरवाला, असमा सूत्तरवाला, काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी, तेजेन्द्र शर्मा).

कथा यू.के. ने लंदन की कोकण एड् फ़ाउण्डेशन के मंच पर भारतीय मूल के उद्योगकर्मी परिवार (टी.आर.एस.) की असमा सूत्तरवाला के ऑडियो सी.डी. का विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया। विमोचन करते हुए काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने कहा, “कम्यूनिटी की सेवा असमा की रूह में गहरे तक पैठी हुई है। असमा ने मुंबई की अपनी ज़िन्दगी में देखा कि झोंपड़-पट्टियों में रहने वाले ग़रीब लोग कैसे पानी के लिये एक दूसरे से लड़ते झगड़ते हैं। असमां ने देखा कि हिन्दुस्तान में गांवों में किस तरह औरतें मीलों पैदल चल कर एक घड़ा पानी भर कर लाती हैं। इसी लिये असमां ने निर्णय लिया है कि इस सीडी की बिक्री से जितने भी पैसे इकट्ठे होंगे, उन्हें दक्षिण एशियाई देशों में पानी से जुड़ी अलग अलग योजनाओं में लगाया जाएगा।”

काउंसलर ज़ुबैरी ने कोकण एड फ़ाउण्डेशन की प्रशंसा करते हुए कहा कि लंदन में यह समुदाय एक शांतिप्रिय एवं प्रगतिशील समाज है। हम सब को इनके संघर्ष एवं मेहनत से सबक लेना चाहिये।

असमां सूत्तरवाला ने कोकण फ़ाउण्डेशन, ज़किया ज़ुबैरी, कमाल फ़की एवं तेजेन्द्र शर्मा के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा, “यदि हम ग्रामीण परिवेश में पानी के पंप लगवा सकें तो यह नारी उत्थान के प्रति सीधा सा सकारात्मक कदम होगा। इससे नारियों को अपने बच्चों एवं परिवार के लिये अधिक समय मिल पाएगा क्योंकि उन्हें दूर दराज़ इलाकों में पानी लाने में समय नहीं गंवाना होगा।” अपने पति हातिम सूत्तरवाला, परिवार के सदस्यों, ज़किया ज़ुबैरी, नवाज़िश अली ख़ान आदि का धन्यवाद करते हुए असमां ने कहा कि इन सब के कारण ही वह अपने सपने को साकर करने में सफल हो पाईं। उनकी सी.डी. में से तीन नातें सुनते हुए श्रोता भाव-विभोर हो उठे।

कथा यू.के. के महासचिव एवं कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए स्वयं एक नात गा कर कार्यक्रम का संचालन किया। उन्होंने कोकण फ़ाउण्डेशन के सृजनात्मक कार्यों की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाई दी। तेजेन्द्र शर्मा ने कहा, “आमतौर पर पत्नी को आगे बढ़ते देख पति को अपना क़द छोटा होता दिखाई देता है। मगर हातिम सूत्तरवाला ने अपनी पत्नी असमां की ख़ूबी को ना केवल पहचाना बल्कि उसे आगे बढ़ाने में भी पूरा योगदान दिया।” उन्होंने सभी श्रोताओं को असमां के ‘सबके लिये जल’ कार्यक्रम को समर्थन देने का आवाह्न भी किया।

इस से पहले मौलाना अब्दुल अमीन एवं डा. पठान ने कोकण एड फ़ाउण्डेशन के कामों का लेखा जोखा श्रोताओं के सामने रखा। उस्ताद नवाज़िश अली ख़ान एवं शबनम ख़ान ने सूफ़ी, ग़ज़ल और हिन्दी फ़िल्मी गीतों से संगीत का समां बांधे रखा। शाम एक सफल शाम रही।

--दीप्ति शर्मा

मंगलवार, 28 जून 2011

लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है – विकास कुमार झा

(लंदन) - ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ के लिये ‘सतरहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिन्दी लेखिका श्रीमती नीना पॉल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।

उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने विकास कुमार झा एवं नीना पॉल को बधाई देते हुए कहा, “हिन्दी अब आहिस्ता- आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाज़ार को इस बात की ख़बर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिन्दी का ज्ञान ज़रूरी है। मुझे बताया गया है कि ब्रिटेन में निजी स्तर पर और संस्थागत स्तर पर हिन्दी के शिक्षण का काम चल रहा है और विदेशी भी बोलचाल की हिन्दी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। यहां के विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। भारतीय उच्चायोग का प्रयास रहेगा कि हिन्दी स्कूली स्तर पर ब्रिटेन में अपनी वापसी दर्ज कर सके।”
(बाएं से तेजेन्द्र शर्मा, आसिफ़ इब्राहिम, लॉर्ड किंग, ज़किया ज़ुबैरी, विकास कुमार झा,
महामहिम नलिन सूरी, विरेन्द्र शर्मा, नीना पॉल, मधु अरोड़ा।)

उन्होंने कथा यू.के. को 17वें सम्मान समारोह के लिये बधाई देते हुए कहा, “कथा यू.के. को यह सम्मान शुरू किये 17 वर्ष हो गये हैं। किसी भी सम्मान की प्रतिष्ठा में उसकी निरंतरता और पारदर्शिता महत्वपूर्ण होती है। इस कसौटी पर भी कथा यूके सम्मान खरे उतरते हैं। मैं तेजेन्द्र शर्मा और उनकी पूरी टीम को इस अवसर पर बधाई देना चाहूंगा और उन्हें यह आश्वासन देना चाहूंगा कि हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों के लिये उन्हें उच्चायोग का सहयोग हमेशा ही मिलता रहेगा। ”

सम्मान ग्रहण करते हुए विकास कुमार झा ने कहा, “एक कवि या लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है। आत्मा के अदृश्य कॉफ़ी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर (परिचारक) हूं और अगला आदेश लेने के लिये प्रतीक्षा में हूं। ” अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “मैकलुस्कीगंज’’ मेरे लिये जागी आंखों का सपना है। मेरे लिये यह मेरे बचपन के दोस्त की तरह है जिसके संग नीम दोपहरियों में आम, अमरूद, जामुन के पेड़ों पर चढ़ने का सुखद रोमांच मैंने साझा किया है। ”

ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन के सदस्य लॉर्ड किंग का कहना था कि, “मैं इस कार्यक्रम को देख कर इतना अभिभूत हूं कि मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी तक तो हमें हिन्दी ले जाना ही है, अब मेरी पीढ़ी के लोगों को भी हिन्दी पढ़ना और लिखना सीख लेना चाहिये।‘’ उन्होंने हिन्दी और पंजाबी भाषा को रोमन लिपि में लिखने पर चिंता जताई।

काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने विकास कुमार झा के उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हिन्दी में शोध करके लिखने की परम्परा विकसित नहीं हो पाई है। विकास कुमार झा ने गहरा शोध करने के बाद मैकलुस्कीेगंज को लिखा है। शायद यह उपन्यास इस परम्परा को स्थापित करने में सफल हो पाए। सन् 1911 में ब्रिटिश सरकार ने एंग्लो-इंडियन रेस को मान्यता दी थी और आज 2011 में यानि कि ठीक सौ साल बाद हम यहां ब्रिटिश संसद में भारत के एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव मैकलुस्कीगंज के जीवन पर आधारित उपन्यास को सम्मानित कर रहे हैं। ”

साउथहॉल से लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने कहा कि “ब्रिटेन में कथा यू.के. द्वारा चलाई गई मुहिम से हिन्दी को ब्रिटेन में पांव जमाने में सहायता मिलेगी। जिस प्रकार ब्रिटेन में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को यहां ब्रिटिश संसद में सम्मानित किया जाता है, उससे हमारे स्थानीय लेखकों का उत्साह बढ़ेगा और भारतीय पाठकों को ब्रिटेन में रचे जा रहे साहित्य को आंकने का अवसर मिलेगा।”

कथा यू.के. के महासचिव कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने मैकलुस्कीगंज एवं तलाश उपन्यासों की चयन प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि ब्रिटेन की युवा पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ओर आकर्षित करने के लिये वे शैलेन्द्र और साहिर लुधियानवी जैसे फ़िल्मी साहित्यकारों पर बनाए गये अपने पॉवर पॉइन्ट प्रेज़ेन्टेशन को लेकर ब्रिटेन के भिन्न भिन्न शहरों में लेकर जाएंगे। उन्होंने चिन्ता जताई कि भारत में भी युवा पीढ़ी हिन्दी साहित्य से दूर होती दिखाई दे रही है।

कथा यू.के. के नव-निर्वाचित अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने कहा कि उन्हें ब्रिटेन में हिन्दी के भविष्य की इतनी चिंता नहीं जितनी कि भारत की युवा पीढ़ी को लेकर है। उनका मानना था कि यह सम्मान भाषा का सम्मान है। भाषा एक दीये की तरह है और कथा यूके यह दीया ब्रिटेन में जलाए हुए है। इस दीये की रौशनी ब्रिटेन की संसद के माध्यम से पूरी दुनियां में फैलेगी।

भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा ने कहा, “मैकलुस्कीगंज अद्भुत भाषा में लिखा एक ऐसा आंचलिक उपन्यास है जो कि वैश्विक उपन्यास की अनुभूति देता है। उपन्यास का मुख्य मुद्दा एंग्लो-इंडियन समाज का दर्द है, मगर उपन्यास उससे कहीं ऊंचा उठकर पूरे विश्व के दर्द को प्रस्तुत करता है। मैकलुस्कीगंज जन्म से एक उपन्यास है और कर्म से एक शोध ग्रन्थ। इस उपन्यास में झारखण्ड की जनजातियों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है। ”

नीना पॉल के उपन्यास तलाश पर अपना लेख पढ़ते हुए नॉटिंघम की कवियत्री जय वर्मा ने कहा कि, “तलाश के पात्रों में प्रेम जीवन का अहम् हिस्सा है। जीवन के संघर्ष को एक चुनौती समझ कर वे एक कदम आगे चलते हैं और दो कदम पीछे हटते प्रतीत होते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हर पात्र को किसी न किसी की निरंतर तलाश है। प्यार को एक बंदिश न मानकर त्याग और क़ुर्बानी की झलक इनमें दिखायी पड़ती है। ”

नीना पॉल ने कथा यू.के. के निर्णायक मण्डल को धन्यवाद देते हुए कहा, “कि उपन्यास मेरे नज़रों में कल्पना, जज़्बात और भावनाओं का संगम है। कभी कभी लेखनी का दिल भी इतना भावुक हो उठता है कि लिखने को मजबूर कर देता है। शायद यही कारण है कि मेरी कहानियों को भावनापूर्ण कहा जाता है। बिना भावनाओं के क़लम चलती भी तो नहीं है। ”

नीना पॉल का मानपत्र मुंबई से पधारीं मधु अरोड़ा ने पढ़ा तो विकास कुमार झा का मानपत्र पढ़ा दीप्ति शर्मा ने। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित किये गये प्रवासी संसार के कहानी विशेषांक (अतिथि संपादक – तेजेन्द्र शर्मा) की प्रतियां संपादक राकेश पाण्डे ने मंचासीन प्रमुख अतिथियों की दीं।

कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्रीमती सूरी, श्री आसिफ़ इब्राहिम (मंत्री समन्वय), राकेश शर्मा (उप-सचिव हिन्दी), आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), गौरीशंकर (उप-निदेशक नेहरू सेन्टर), मॉस्को से लुडमिला खोखलोवा और बॉरिस ज़ाख़ारीन, भारत से परमानंद पांचाल, कृष्ण दत्त पालीवाल, केशरी नाथ त्रिपाठी, दाऊजी गुप्त, ओंकारेश्वर पाण्डेय, राकेश पाण्डेय (संपादक – प्रवासी संसार), गगन शर्मा, रूही सिंह, डा. फ़रीदा, डा. भारद्वाज, पूर्व पद्मानंद साहित्य सम्मान विजेता मोहन राणा, उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, काउंसलर के.सी. मोहन, श्याम नारायण पाण्डेय, शिखा वार्षणेय, अरुणा अजितसरिया, प्रो.अमीन मुग़ल, सरोज श्रीवास्तव, राकेश दुबे, पद्मेश गुप्त, इंदर स्याल एवं सोहन राही आदि ने भाग लिया।