मंगलवार, 28 जून 2011

लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है – विकास कुमार झा

(लंदन) - ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ के लिये ‘सतरहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिन्दी लेखिका श्रीमती नीना पॉल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।

उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने विकास कुमार झा एवं नीना पॉल को बधाई देते हुए कहा, “हिन्दी अब आहिस्ता- आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाज़ार को इस बात की ख़बर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिन्दी का ज्ञान ज़रूरी है। मुझे बताया गया है कि ब्रिटेन में निजी स्तर पर और संस्थागत स्तर पर हिन्दी के शिक्षण का काम चल रहा है और विदेशी भी बोलचाल की हिन्दी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। यहां के विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। भारतीय उच्चायोग का प्रयास रहेगा कि हिन्दी स्कूली स्तर पर ब्रिटेन में अपनी वापसी दर्ज कर सके।”
(बाएं से तेजेन्द्र शर्मा, आसिफ़ इब्राहिम, लॉर्ड किंग, ज़किया ज़ुबैरी, विकास कुमार झा,
महामहिम नलिन सूरी, विरेन्द्र शर्मा, नीना पॉल, मधु अरोड़ा।)

उन्होंने कथा यू.के. को 17वें सम्मान समारोह के लिये बधाई देते हुए कहा, “कथा यू.के. को यह सम्मान शुरू किये 17 वर्ष हो गये हैं। किसी भी सम्मान की प्रतिष्ठा में उसकी निरंतरता और पारदर्शिता महत्वपूर्ण होती है। इस कसौटी पर भी कथा यूके सम्मान खरे उतरते हैं। मैं तेजेन्द्र शर्मा और उनकी पूरी टीम को इस अवसर पर बधाई देना चाहूंगा और उन्हें यह आश्वासन देना चाहूंगा कि हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों के लिये उन्हें उच्चायोग का सहयोग हमेशा ही मिलता रहेगा। ”

सम्मान ग्रहण करते हुए विकास कुमार झा ने कहा, “एक कवि या लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है। आत्मा के अदृश्य कॉफ़ी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर (परिचारक) हूं और अगला आदेश लेने के लिये प्रतीक्षा में हूं। ” अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “मैकलुस्कीगंज’’ मेरे लिये जागी आंखों का सपना है। मेरे लिये यह मेरे बचपन के दोस्त की तरह है जिसके संग नीम दोपहरियों में आम, अमरूद, जामुन के पेड़ों पर चढ़ने का सुखद रोमांच मैंने साझा किया है। ”

ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन के सदस्य लॉर्ड किंग का कहना था कि, “मैं इस कार्यक्रम को देख कर इतना अभिभूत हूं कि मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी तक तो हमें हिन्दी ले जाना ही है, अब मेरी पीढ़ी के लोगों को भी हिन्दी पढ़ना और लिखना सीख लेना चाहिये।‘’ उन्होंने हिन्दी और पंजाबी भाषा को रोमन लिपि में लिखने पर चिंता जताई।

काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने विकास कुमार झा के उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हिन्दी में शोध करके लिखने की परम्परा विकसित नहीं हो पाई है। विकास कुमार झा ने गहरा शोध करने के बाद मैकलुस्कीेगंज को लिखा है। शायद यह उपन्यास इस परम्परा को स्थापित करने में सफल हो पाए। सन् 1911 में ब्रिटिश सरकार ने एंग्लो-इंडियन रेस को मान्यता दी थी और आज 2011 में यानि कि ठीक सौ साल बाद हम यहां ब्रिटिश संसद में भारत के एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव मैकलुस्कीगंज के जीवन पर आधारित उपन्यास को सम्मानित कर रहे हैं। ”

साउथहॉल से लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने कहा कि “ब्रिटेन में कथा यू.के. द्वारा चलाई गई मुहिम से हिन्दी को ब्रिटेन में पांव जमाने में सहायता मिलेगी। जिस प्रकार ब्रिटेन में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को यहां ब्रिटिश संसद में सम्मानित किया जाता है, उससे हमारे स्थानीय लेखकों का उत्साह बढ़ेगा और भारतीय पाठकों को ब्रिटेन में रचे जा रहे साहित्य को आंकने का अवसर मिलेगा।”

कथा यू.के. के महासचिव कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने मैकलुस्कीगंज एवं तलाश उपन्यासों की चयन प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि ब्रिटेन की युवा पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ओर आकर्षित करने के लिये वे शैलेन्द्र और साहिर लुधियानवी जैसे फ़िल्मी साहित्यकारों पर बनाए गये अपने पॉवर पॉइन्ट प्रेज़ेन्टेशन को लेकर ब्रिटेन के भिन्न भिन्न शहरों में लेकर जाएंगे। उन्होंने चिन्ता जताई कि भारत में भी युवा पीढ़ी हिन्दी साहित्य से दूर होती दिखाई दे रही है।

कथा यू.के. के नव-निर्वाचित अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने कहा कि उन्हें ब्रिटेन में हिन्दी के भविष्य की इतनी चिंता नहीं जितनी कि भारत की युवा पीढ़ी को लेकर है। उनका मानना था कि यह सम्मान भाषा का सम्मान है। भाषा एक दीये की तरह है और कथा यूके यह दीया ब्रिटेन में जलाए हुए है। इस दीये की रौशनी ब्रिटेन की संसद के माध्यम से पूरी दुनियां में फैलेगी।

भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा ने कहा, “मैकलुस्कीगंज अद्भुत भाषा में लिखा एक ऐसा आंचलिक उपन्यास है जो कि वैश्विक उपन्यास की अनुभूति देता है। उपन्यास का मुख्य मुद्दा एंग्लो-इंडियन समाज का दर्द है, मगर उपन्यास उससे कहीं ऊंचा उठकर पूरे विश्व के दर्द को प्रस्तुत करता है। मैकलुस्कीगंज जन्म से एक उपन्यास है और कर्म से एक शोध ग्रन्थ। इस उपन्यास में झारखण्ड की जनजातियों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है। ”

नीना पॉल के उपन्यास तलाश पर अपना लेख पढ़ते हुए नॉटिंघम की कवियत्री जय वर्मा ने कहा कि, “तलाश के पात्रों में प्रेम जीवन का अहम् हिस्सा है। जीवन के संघर्ष को एक चुनौती समझ कर वे एक कदम आगे चलते हैं और दो कदम पीछे हटते प्रतीत होते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हर पात्र को किसी न किसी की निरंतर तलाश है। प्यार को एक बंदिश न मानकर त्याग और क़ुर्बानी की झलक इनमें दिखायी पड़ती है। ”

नीना पॉल ने कथा यू.के. के निर्णायक मण्डल को धन्यवाद देते हुए कहा, “कि उपन्यास मेरे नज़रों में कल्पना, जज़्बात और भावनाओं का संगम है। कभी कभी लेखनी का दिल भी इतना भावुक हो उठता है कि लिखने को मजबूर कर देता है। शायद यही कारण है कि मेरी कहानियों को भावनापूर्ण कहा जाता है। बिना भावनाओं के क़लम चलती भी तो नहीं है। ”

नीना पॉल का मानपत्र मुंबई से पधारीं मधु अरोड़ा ने पढ़ा तो विकास कुमार झा का मानपत्र पढ़ा दीप्ति शर्मा ने। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित किये गये प्रवासी संसार के कहानी विशेषांक (अतिथि संपादक – तेजेन्द्र शर्मा) की प्रतियां संपादक राकेश पाण्डे ने मंचासीन प्रमुख अतिथियों की दीं।

कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्रीमती सूरी, श्री आसिफ़ इब्राहिम (मंत्री समन्वय), राकेश शर्मा (उप-सचिव हिन्दी), आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), गौरीशंकर (उप-निदेशक नेहरू सेन्टर), मॉस्को से लुडमिला खोखलोवा और बॉरिस ज़ाख़ारीन, भारत से परमानंद पांचाल, कृष्ण दत्त पालीवाल, केशरी नाथ त्रिपाठी, दाऊजी गुप्त, ओंकारेश्वर पाण्डेय, राकेश पाण्डेय (संपादक – प्रवासी संसार), गगन शर्मा, रूही सिंह, डा. फ़रीदा, डा. भारद्वाज, पूर्व पद्मानंद साहित्य सम्मान विजेता मोहन राणा, उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, काउंसलर के.सी. मोहन, श्याम नारायण पाण्डेय, शिखा वार्षणेय, अरुणा अजितसरिया, प्रो.अमीन मुग़ल, सरोज श्रीवास्तव, राकेश दुबे, पद्मेश गुप्त, इंदर स्याल एवं सोहन राही आदि ने भाग लिया।

सोमवार, 20 जून 2011

शैलेन्द्र– एक नई दुनिया का सपना - तेजेन्द्र शर्मा

लंदन – 18 जून, 2011, शैलेन्द्र एक नई दुनिया का सपना देखते हैं। उन्हें अपने वर्तमान से शिकायतें ज़रूर हैं मगर अंग्रेज़ी के कवि शैली की तरह वे भी सोचते हैं कि इक नया ज़माना ज़रूर आएगा। फ़िल्म बूट पॉलिश में शैलेन्द्र लिखते हैं “आने वाली दुनियां में सबके सर पर ताज होगा / ना भूखों की भीड़ होगी ना दुःखों का राज होगा / बदलेगा ज़माना ये सितारों पे लिखा है।”

और यह सब वे बच्चों के मुंह से कहलवाते हैं - बूट पॉलिश करके पेट पालने वाले बच्चे जिन्हें “भीख में जो मोती मिले, वो भी हम ना लेंगे / ज़िन्दगी के आंसुओं की माला पहनेंगे।” यह कहना था प्रसिद्ध कथाकार एवं कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा का। वे नेहरू सेंटर, लंदन, एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स एवं कथा यू.के. द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम आम आदमी की पीड़ा का कवि - शैलेन्द्र में अपनी बात कह रहे थे।

तेजेन्द्र शर्मा का मानना है कि शैलेन्द्र क्योंकि एक प्रगतिशील कवि थे, उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी भावनाओं को फ़िल्मों के चरित्रों, परिस्थितियों, और अपने गीतों के माध्यम से प्रेषित किया। वे इस मामले में भाग्यशाली भी थे कि उन्हें राज कपूर, शंकर जयकिशन, हसरत जयपुरी, ख़्वाजा अहमद अब्बास और मुकेश जैसी टीम मिली। अब्बास की कहानी और थीम, राज कपूर का निर्देशन और अभिनय और शंकर जयकिशन के संगीत के माध्यम से शैलेन्द्र गंभीर से गंभीर मसले पर भी सरल शब्दों में गहरी बात कह जाते थे।

जिस देश में गंगा बहती है फ़िल्म के एक गीत में शैलेन्द्र गीतकार की परिभाषा देते हैं, “काम नये नित गीत बनाना / गीत बना के जहां को सुनाना / कोई ना मिले तो अकेले में गाना।” तो वहीं पतिता में यह भी बता देते हैं कि “हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं / जब हद से गुज़र जाती है ख़ुशी, आंसू भी निकलते आते हैं।”

तेजेन्द्र ने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि कथाकार भीष्म साहनी का मानना था कि शैलेन्द्र के हिन्दी फ़िल्मों के जुड़ने से फ़िल्मी गीत समृद्ध होंगे और उनमें साहित्य का पुट जुड़ जाएगा। वहीं गुलज़ार का कहना है, “बिना शक़ शैलेन्द्र को हिन्दी सिनेमा का आज तक का सबसे बड़ा लिरिसिस्ट कहा जा सकता है। उनके गीतों को खुरच कर देखें तो आपको सतह के नीचे दबे नए अर्थ प्राप्त होंगे. उनके एक ही गीत में न जाने कितने गहरे अर्थ छिपे होते हैं।”

शैलेन्द्र को मिले सम्मानों के बारे में तेजेन्द्र शर्मा ने कहा, “हालांकि शैलेन्द्र ने अपना बेहतरीन काम आर.के. प्रोडक्शन्स के लिये किया, मगर उन्हें कभी उन गीतों के लिये सम्मान नहीं मिला। उन्हें तीन फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिले यह मेरा दीवानापन है (यहूदी), सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी (अनाड़ी), मैं गाऊं तुम सो जाओ (ब्रह्मचारी)। उनका कहना था कि इससे ज़ाहिर होता है कि उस ज़माने में गीत लेखकों की गुणवत्ता कितनी ऊंचे स्तर की रही होगी। शायद उसे भारतीय फ़िल्मी गीत लेखन का सुनहरा युग कहा जा सकता है जब शैलेन्द्र, साहिर, शकील, कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, राजेन्द्र कृष्ण, जांनिसार अख़्तर, राजा मेंहदी अली ख़ान, भरत व्यास, नरेन्द्र शर्मा, पण्डित प्रदीप, और हसरत जयपुरी जैसे लोग हिन्दी फ़िल्मों के लिये गीत लिख रहे थे। उस समय की प्रतिस्पर्धा सकारात्मक थी, जलन से भरपूर नहीं। हर गीतकार दूसरे से बेहतर लिखने का प्रयास करता था।

तेजेन्द्र शर्मा के अनुसार शैलेन्द्र, शंकर जयकिशन और राज कपूर की महानतम उपलब्धि श्री 420 है। इसके गीतों की विविधता और आम आदमी के दर्द की समझ शैलेन्द्र के बोलों के माध्यम से हमारी शिराओं में दौड़ने लगती है। “छोटे से घर में ग़रीब का बेटा / मैं भी हूं मां के नसीब का बेटा / रंजो ग़म बचपन के साथी / आंधियों में जले दीपक बाती / भूख ने है बड़े प्यार से पाला।” इस फ़िल्म में मुड़ मुड़ के ना देख, प्यार हुआ इक़रार हुआ, मेरा जूता है जापानी जैसे गीत एक अनूठी उपलब्धि हैं।

बचपन में ही अपनी मां को एक हादसे में खो चुके शैलेन्द्र पूरी तरह से नास्तिक थे। मगर फ़िल्मों के लिये वे “भय भंजना वन्दना सुन हमारी” (बसन्त बहार), “ना मैं धन चाहूं, ना रतन चाहूं” (काला बाज़ार), “कहां जा रहा है तू ऐ जाने वाले” (सीमा), जागो मोहन प्यारे (जागते रहो) जैसे भजन भी लिख सकते थे। उनका लिखा हुआ राखी का गीत आज भी हर रक्षाबंधन पर सुनाई देता है, “भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना।”

शैलेन्द्र ने अपना अधिकतर काम शंकर जयकिशन के लिये किया। मगर सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी, रौशन और सी. रामचन्द्र के लिये भी गीत लिखे। शैलेन्द्र के लेखन में वर्तमान जीवन के प्रति आक्रोश अवश्य है मगर मायूसी नहीं। विद्रोह है, क्रांति है, हालात को समझने की कूवत है मगर निराशा नहीं है – वे कहते हैं तूं ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत पे यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर ।

अपने एक घन्टे तीस मिनट लम्बे पॉवर पॉइण्ट प्रेज़ेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने जिस देश में गंगा बहती है, अनाड़ी, पतिता, संगम, श्री 420, जंगली, बूट पॉलिश, गाईड, काला बाज़ार, छोटी बहन, जागते रहो, छोटी छोटी बातें, आदि फ़िल्मों के गीत स्क्रीन पर दिखाए।

कार्यक्रम की शुरूआत में कथा यूके के फ़ाउण्डर ट्रस्टी सिने स्टार नवीन निश्चल को श्रद्धांजलि दी गई। नवीन निश्चल का हाल ही में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। उनकी फ़िल्म बुड्ढा मिल गया का गीत “रात कली इक ख़्वाब में आई.. ” उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप दिखाया गया। मंच पर श्री कैलाश बुधवार का कथा यू.के. के नये अध्यक्ष के रूप में स्वागत किया गया। धन्यवाद ज्ञापन नेहरू सेंटर की निदेशिका मोनिका मोहता ने दिया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री विरेन्द्र शर्मा एवं काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी के अतिरिक्त श्री आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), श्री जितेन्द्र कुमार (भारतीय उच्चायोग), गौरी शंकर (उप-निदेशक, नेहरू सेंटर), कैलाश बुधवार, उषा राजे सक्सेना, के.बी.एल. सक्सेना, असमा सूत्तरवाला, रुकैया गोकल, अब्बास गोकल, वेद मोहला, अरुणा अजितसरिया, उर्मिला भारद्वाज, आलमआरा, निखिल गौर, दीप्ति शर्मा आदि शामिल थे।

रिपोर्ट - शिखा वार्षेणय, लंदन से