शुक्रवार, 13 मई 2011

श्री कैलाश बुधवार कथा यू.के. के अध्यक्ष

कथा यू.के. को यह घोषणा करते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारे पथ प्रदर्शक श्री कैलाश बुधवार (भूतपूर्व अध्यक्ष – बीबीसी रेडियो, वर्ल्ड सर्विस हिन्दी एवं तमिल) ने हमारी संस्था के अध्यक्ष का पद स्वीकार कर लिया है।

कैलाश जी 8 मई 2011 से हमारे अध्यक्ष होंगे।

पृथ्वी थियेटर के ज़माने से मंच से जुड़े कैलाश जी करीब 35 वर्षों तक बीबीसी रेडियो से जुड़े रहे। वे कविता और कहानी भी लिखते हैं। हमें विश्वास है कि कैलाश जी के हमारे साथ जुड़ने से कथा यू.के. को नए आयाम हासिल करने में सफलता मिलेगी।


तेजेन्द्र शर्मा
महासचिव (कथा यू.के.)

मंगलवार, 10 मई 2011

रिश्तों की नई परिभाषा देती कहानियां

(बैठे हुए बाएं से – श्रीमती विनोदिनी बुधवार, मोहसिना जीलानी, नीना पॉल, अरुणा अजितसरिया, काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, पद्मजा जी, मुज्जन ज़ुबैरी। खड़े हुए बाएं से– श्री आसिफ़ जीलानी, कैलाश बुधवार (अध्यक्ष – कथा यू.के.) प्रो. अमीन मुग़ल, प्रो. हबीब अहमद ज़ुबैरी, डा. इस्लाम बोस, तेजेन्द्र शर्मा (महासचिव – कथा यू.के.), आनंद कुमार हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी, श्री एस. के धामी।

कथा यू.के. द्वारा लंदन के उपनगर एजवेअर में आयोजित कथा गोष्ठी में काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने अपनी कहानी मन की सांकल एवं लेस्टर की कथाकार नीना पॉल ने अपनी कहानी आख़री गीत का पाठ किया। कथा यू.के. के महासचिव एवं प्रतिष्ठित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने कहानियों एवं कहानीकारों का परिचय देते हुए कहा कि इन दोनों कहानियों ने मानवीय रिश्तों की कड़ी पड़ताल करते हुए रिश्तों की एक नई परिभाषा लिखी है। जहां नीना पॉल ने अपनी कहानी में मंटो जैसा ट्विस्ट देते हुए कहानी में पिता पुत्री के संबंधों की व्याख्या की है वहीं ज़कीया ज़ुबैरी ने एक बहुत ही कम्पलैक्स थीम को पूरी महारथ के साथ पन्नों पर उतारा है। ज़कीया ज़ुबैरी ने अपनी कहानी में कहानीपन बरक़रार रखते हुए स्थितियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है।

नीना पॉल की कहानी आख़री गीत पिता द्वारा अपने परिवार को छोड़ जाने के बाद पुत्री के दिल में पिता के प्रति नकारात्मक भावनाओं का अंबार भर जाता है। किन हालात में पुत्री का हृदय परिवर्तन होता है और ग़लतफ़हमियां किस ट्विस्ट से दूर होती हैं। यही कहानी का सार है। भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा के अनुसार कहानी में यूनिवर्सल अपील के संवाद हैं।  कैलाश बुधवार का मानना था कि कहानी रोचक है, बांधती है, और इसके पात्र व दृश्य स्वाभाविक एवं सजीव हैं। किन्तु पुत्री का पिता के प्रति अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हो जाता है, कहानी नहीं बता पाती।
आनंद कुमार के अनुसार कहानी में पिता पुत्री की संवादहीनता की स्थिति बहुत गहराई से दिखाई गई है। परिवर्तन बहुत सूक्ष्म ढंग से दिखाया गया है। एस.के.धामी को कहानी की भाषा और बिंब बहुत पसन्द आए। अरुणा अजितसरिया के अनुसार कहानी के अंत का संकेत बहुत कलात्मकता से दिया गया है। संबंधों की जटिलता की गुत्थियों को कहानी खोलती है और संपूर्ण रूप से कहानी सफल है। ज़कीया ज़ुबैरी के अनुसार कहानी की कई परतें हैं। कहानी की भाषा कवितामई है और कहानी भीतर तक उतरने की क्षमता रखती है। अध्यक्ष पद से बोलते हुए प्रो. अमीन मुग़ल ने कहा कि कहानी की ज़बान बोलचाल की ज़बान हे। पिता पुत्री में दो तरह के रिश्ता सामने आता है – एक अणुवांशिक और दूसरा कला के माध्यम से। कहानी का अंत कहानी में सघन ऊर्जा भर देता है।
ज़कीया ज़ुबैरी की कहानी मन की साँकल मां और बेटे के संबंधों पर आधारित एक कम्पलेक्स कहानी है। बचपन में बेटे के लिये मार खाने वाली मां आज अपने ही बेटे के हाथों झिंझोड़ी जा चुकी है। उसके बीमार बदन पर नील उभर रहे हैं। दोनों के संबंध उस कगार पर पहुंच गये हैं कि मां के मन में डर बैठ गया है कि बेटा शायद रात को सोते हुए उसका कत्ल ही न कर बैठे। वह उठती है और कमरे की सांकल लगा देती है। सांकल एक ख़ूबसूरत बिंब की तरह उभर कर आती है।

कैलाश बुधवार का मानना था कि कहानी स्तब्धकारी है। मानवीय संवेदनाएं हमें झिंझोड़ देती हैं। जैसे माइक्रोस्कोप लगा कर लेखिका ने रिश्तों को हमारे सामने उकेर कर रख दिया है। कहानी भाषा, प्रवाह, स्ट्रक्चर सभी में सफल है। जिल, नीरा और पति का चित्रण भी मुख्य पात्रों की ही तरह सजीव है। पद्मजा जी का मानना था कि इस कहानी से उबरने में उन्हें समय लगेगा। कहानी में यथार्थ का चित्रण है जो कि सजीव भी है और वास्तविक भी। साहित्य के लिये सवाल खड़े करना बहुत ज़रूरी है और यह कहानी सवाल खड़े करती है। आसिफ़ जीलानी का कहना था कि बीच का बच्चा हमेशा एक डिफ़िकल्ट बच्चा होता है। जिस तरह ज़कीया ज़ुबैरी ने नारी के मन का दर्द दिखाया है, वह केवल एक नारी ही दिखा सकती थी। कहानी मनोवैज्ञानिक स्तर पर रिश्तों की पड़ताल करती है।

हॉलैण्ड से पधारी पंजाबी साहित्यकार अमरज्योति ने मां और पुत्र के संबंधों के विषय में बात  करते हुए कहा कि कहानी की यात्रा महत्वपूर्ण है। प्याज़ से निकले आंसुओं का धनिये के बीज से इलाज करने वाला पुत्र अपनी मां की आंखें दर्द के आंसुओं से भर देता है। रिश्तों की प्रस्तुति लगभग महान है। आंनद कुमार का कहना था कि मां बेटे के संबंधों को बहुत ख़ूबसूरती से उकेरा गया है। वहीं दीप्ति शर्मा का कहना था कि कहानी में दर्द का सटीक चित्रण है मगर आवश्यक था कि मां अपने अधिकार की घोषणा करती और पुत्र को उसका सही स्थान बता देती। एस.के.धामी को लगा जैसे कि वे ब्रिटेन के किसी भी एशियन घर की फ़िल्म देख रहे हों। जो वे अख़बारों में पढ़ते हैं, लोगों से बातों में सुनते हैं, वह सब यह कहानी बहुत खूबसूरती से दिखाती है।

अरुणा अजितसरिया का मानना था कि कहानी में तीन पीढ़ियों का दर्द है – सास, मां और जिल यानि कि बहू। यह देशकाल के बाहर की कहानी है। ज़कीया ज़ुबैरी को एक सशक्त कहानी के लिये बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह एक नारी के आंतरिक दर्द की कहानी है। हम सीमा के दर्द को समझ सकते हैं। देवी पारेख को लगा कि ऐसी कहानी केवल एक मां ही लिख सकती है। प्रो. अमीन मुग़ल का कहना था कि यह मां और पुत्र के संबंधों की एक ख़ौफ़नाक कहानी है। सांकल का बिंब इस कहानी का सबसे सबल पक्ष है। यह कहानी पति पत्नी और मां पुत्र के संबंधों से कहीं आगे बढ़ कर दो लिंगों की संगतता (कॉम्पेटेबिलिटी) पर प्रश्न उठाती है।  उन्हें सांकल का बिंब सीधा इबसन के नाटक के चरित्र नोरा तक ले गया जब वह दरवाज़ा बन्द करती है तो लगता है कि पूरे युरोप की महिलाओं ने दरवाज़ा बन्द कर दिया हो। कहानी अपने भीतर एक निर्दयी सच लिये है। कहानी का स्टाइल, टोन, बातचीत का अंदाज़ सभी कहानी को उच्च श्रेणी की कहानी बनाते हैं।

गोष्ठी को सफल बनाने के लिये प्रो. अमीन मुग़ल, कैलाश बुधवार (अध्यक्ष – कथा यू.के.), सुश्री पद्मजा (भारतीय उच्चायोग), आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी – भारतीय उच्चायोग), एस.के. धामी (भारतीय उच्चायोग), आसिफ़ जीलानी (बीबीसी रेडियो), प्रो. हबीब ज़ुबैरी, मोहसिना जीलानी, देवी पारेख, सुरेन्द्र कुमार, ओम कटारिया, परी कटारिया, पायल सुर्वे (लूटन), डा. अमर ज्योति (पंजाबी साहित्यकार), डा. बोस आदि शामिल थे। कार्यक्रम के मेज़बान थे अरुणा एवं नंद अजितसरिया। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया।

-- दीप्ति शर्मा