मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

कब्र का मुनाफ़ा और पत्रिका रचना समय के विशेषांक का लोकार्पण

सधी और तराशी हुई हैं तेजेन्द्र शर्मा की कहानियां – राजेन्द्र यादव

नई दिल्ली। वरिष्ठ कथाकार एवं हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने कहा कि, “प्रवासी लेखक तेजेन्द्र शर्मा की कहानियां कई बारीक़ स्तरों पर पहचान की खोज की कहानियां हैं। क़ब्र का मुनाफ़ा संग्रह में तेजेन्द्र शर्मा की कहानियां सधी और तराशी हुई हैं। श्री यादव ने ये बातें सामयिक प्रकाशन और समाज संस्था के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुई कही। इस अवसर पर तेजेन्द्र शर्मा के कहानी संग्रह क़ब्र का मुनाफ़ा के दूसरे संस्करण एवं भोपाल से प्रकाशित हरि भटनागर द्वारा संपादित पत्रिका रचना समय के विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया।

लंदन से विशेष रूप से पधारे कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने जब अपने लिखे साहित्य को को प्रवासी साहित्य कहे और माने जाने पर असहमति जताई तो श्री यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी लेखक को प्रवासी इसलिये नहीं कहा जाता कि उसे अपमानित करना है या अलग बिरादरी का दिखाना है, बल्कि इसलिये है क्योंकि हिन्दी कहानी पच्चासों टुकड़ों में बँटी हुई है।
मिसाल के तौर पर किसी ने पहाड़ी कहानी का झण्डा उठा रखा है तो किसी कहानी को आंचलिक खाँचे में रख दिया जाता है। दरअसल ऐसा विभाजन करने के लिये कहा जाता है। यह विभाजन इसलिये किया जाता है ताकि कहानी को संपूर्णता से समझा-देखा जा सके।

तेजेन्द्र शर्मा की शिक़ायत यह थी कि मैं प्रवासी हुआ तो उससे पहले का लिखा मेरा लेखन भी प्रवासी क़रार कर दिया गया। उन्होंने सवाल किया कि लेखक प्रवासी हो सकता है, मगर उसका साहित्या कैसे हो सकात है। श्री शर्मा ने प्रवासी लेखकों से भी कहा कि आप लिखिए और ज़रूर लिखिए मगर पढ़िये ज़रूर। एक कहानी लिखने से पहले पंद्रह कहानियां ज़रूर पढ़िये। उन्होंने आह्वान किया कि हमें नए मुहावरे गढ़ने होंगे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ‘परिचयदास’ ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों को ज़मीन से जुड़ा हुआ बताया। उन्होंने कहा कि उनकी कहानियों में ग़ज़ब की पठनीयता है।
अजय नावरिया ने लंदन से विशेष रूप से भेजा गया कथाकार ज़किया ज़ुबैरी का संदेश पढ़ कर सुनाया जिसमें उन्होंने कहा कि यह समारोह तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों की मुख्यधारा द्वारा स्वीकृति का प्रमाण है।

इस अवसर पर भारत भारद्वाज, सुशील सिद्धार्थ, विजय शर्मा, साधना अग्रवाल एवं वंदना पुष्पेन्द्र ने तेजेन्द्र शर्मा कि कहानियों और लेखन पर अपने विचार रखे। वक्ताओं ने उनकी कहानियों को मार्मिक, विविधतापूर्ण एवं पास-परिवेश से जुड़ा बताया। उनके मुताबिक़ शर्मा की कहानियां अतीत (भारत) और वर्तमान (लंदन) के सामाजिक हालात से जुड़ी हुई हैं। भारत भारद्वाज ने उनकी कहानियों को समकालीन हिन्दी कहानी का आधा गाँव कहा।

कार्यक्रम का संचालन युवा कथाकार अजय नावरिया ने किया तथा अतिथियों का स्वागत सामयिक प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक महेश भारद्वाज ने किया। खचाखच भरे लोकार्पण समारोह में तेजेन्द्र के कॉलेज के ज़माने के प्राध्यापक सोमनाथ, कथा यू.के. के सम्मानित लेखकों असग़र वजाहत, भगवानदास मोरवाल, विकास कुमार झा के अलावा के. बिक्रम सिंह, सत्यकाम, मनीषा कुलश्रेष्ठ,
नरेन्द्र नागदेव, अरुण आदित्य, अल्का सिन्हा, प्रदीप पंत, आलोक श्रीवास्तव, अमरनाथ अमर, गीताश्री, मानसी, वर्तिका नंदा, अजन्ता शर्मा, नरेश शांडिल्य, अनिल जोशी, अनिता कपूर (अमरीका), राज चोपड़ा (लंदन), राकेश पाण्डे, आरिफ़ जमाल जैसे हिन्दी जगत के जाने-माने लेखक, पत्रकार, प्रशासनिक अधिकारी एवं गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं।

बुधवार, 28 सितंबर 2011

असमा सूत्तरवाला के ऑडियो सी.डी. का विमोचन

(बाएं से उस्ताद नवाज़िश अली ख़ान, हातिम सूत्तरवाला, असमा सूत्तरवाला, काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी, तेजेन्द्र शर्मा).

कथा यू.के. ने लंदन की कोकण एड् फ़ाउण्डेशन के मंच पर भारतीय मूल के उद्योगकर्मी परिवार (टी.आर.एस.) की असमा सूत्तरवाला के ऑडियो सी.डी. का विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया। विमोचन करते हुए काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने कहा, “कम्यूनिटी की सेवा असमा की रूह में गहरे तक पैठी हुई है। असमा ने मुंबई की अपनी ज़िन्दगी में देखा कि झोंपड़-पट्टियों में रहने वाले ग़रीब लोग कैसे पानी के लिये एक दूसरे से लड़ते झगड़ते हैं। असमां ने देखा कि हिन्दुस्तान में गांवों में किस तरह औरतें मीलों पैदल चल कर एक घड़ा पानी भर कर लाती हैं। इसी लिये असमां ने निर्णय लिया है कि इस सीडी की बिक्री से जितने भी पैसे इकट्ठे होंगे, उन्हें दक्षिण एशियाई देशों में पानी से जुड़ी अलग अलग योजनाओं में लगाया जाएगा।”

काउंसलर ज़ुबैरी ने कोकण एड फ़ाउण्डेशन की प्रशंसा करते हुए कहा कि लंदन में यह समुदाय एक शांतिप्रिय एवं प्रगतिशील समाज है। हम सब को इनके संघर्ष एवं मेहनत से सबक लेना चाहिये।

असमां सूत्तरवाला ने कोकण फ़ाउण्डेशन, ज़किया ज़ुबैरी, कमाल फ़की एवं तेजेन्द्र शर्मा के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा, “यदि हम ग्रामीण परिवेश में पानी के पंप लगवा सकें तो यह नारी उत्थान के प्रति सीधा सा सकारात्मक कदम होगा। इससे नारियों को अपने बच्चों एवं परिवार के लिये अधिक समय मिल पाएगा क्योंकि उन्हें दूर दराज़ इलाकों में पानी लाने में समय नहीं गंवाना होगा।” अपने पति हातिम सूत्तरवाला, परिवार के सदस्यों, ज़किया ज़ुबैरी, नवाज़िश अली ख़ान आदि का धन्यवाद करते हुए असमां ने कहा कि इन सब के कारण ही वह अपने सपने को साकर करने में सफल हो पाईं। उनकी सी.डी. में से तीन नातें सुनते हुए श्रोता भाव-विभोर हो उठे।

कथा यू.के. के महासचिव एवं कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए स्वयं एक नात गा कर कार्यक्रम का संचालन किया। उन्होंने कोकण फ़ाउण्डेशन के सृजनात्मक कार्यों की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाई दी। तेजेन्द्र शर्मा ने कहा, “आमतौर पर पत्नी को आगे बढ़ते देख पति को अपना क़द छोटा होता दिखाई देता है। मगर हातिम सूत्तरवाला ने अपनी पत्नी असमां की ख़ूबी को ना केवल पहचाना बल्कि उसे आगे बढ़ाने में भी पूरा योगदान दिया।” उन्होंने सभी श्रोताओं को असमां के ‘सबके लिये जल’ कार्यक्रम को समर्थन देने का आवाह्न भी किया।

इस से पहले मौलाना अब्दुल अमीन एवं डा. पठान ने कोकण एड फ़ाउण्डेशन के कामों का लेखा जोखा श्रोताओं के सामने रखा। उस्ताद नवाज़िश अली ख़ान एवं शबनम ख़ान ने सूफ़ी, ग़ज़ल और हिन्दी फ़िल्मी गीतों से संगीत का समां बांधे रखा। शाम एक सफल शाम रही।

--दीप्ति शर्मा

मंगलवार, 28 जून 2011

लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है – विकास कुमार झा

(लंदन) - ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ के लिये ‘सतरहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिन्दी लेखिका श्रीमती नीना पॉल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।

उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने विकास कुमार झा एवं नीना पॉल को बधाई देते हुए कहा, “हिन्दी अब आहिस्ता- आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाज़ार को इस बात की ख़बर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिन्दी का ज्ञान ज़रूरी है। मुझे बताया गया है कि ब्रिटेन में निजी स्तर पर और संस्थागत स्तर पर हिन्दी के शिक्षण का काम चल रहा है और विदेशी भी बोलचाल की हिन्दी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। यहां के विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। भारतीय उच्चायोग का प्रयास रहेगा कि हिन्दी स्कूली स्तर पर ब्रिटेन में अपनी वापसी दर्ज कर सके।”
(बाएं से तेजेन्द्र शर्मा, आसिफ़ इब्राहिम, लॉर्ड किंग, ज़किया ज़ुबैरी, विकास कुमार झा,
महामहिम नलिन सूरी, विरेन्द्र शर्मा, नीना पॉल, मधु अरोड़ा।)

उन्होंने कथा यू.के. को 17वें सम्मान समारोह के लिये बधाई देते हुए कहा, “कथा यू.के. को यह सम्मान शुरू किये 17 वर्ष हो गये हैं। किसी भी सम्मान की प्रतिष्ठा में उसकी निरंतरता और पारदर्शिता महत्वपूर्ण होती है। इस कसौटी पर भी कथा यूके सम्मान खरे उतरते हैं। मैं तेजेन्द्र शर्मा और उनकी पूरी टीम को इस अवसर पर बधाई देना चाहूंगा और उन्हें यह आश्वासन देना चाहूंगा कि हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों के लिये उन्हें उच्चायोग का सहयोग हमेशा ही मिलता रहेगा। ”

सम्मान ग्रहण करते हुए विकास कुमार झा ने कहा, “एक कवि या लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है। आत्मा के अदृश्य कॉफ़ी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर (परिचारक) हूं और अगला आदेश लेने के लिये प्रतीक्षा में हूं। ” अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “मैकलुस्कीगंज’’ मेरे लिये जागी आंखों का सपना है। मेरे लिये यह मेरे बचपन के दोस्त की तरह है जिसके संग नीम दोपहरियों में आम, अमरूद, जामुन के पेड़ों पर चढ़ने का सुखद रोमांच मैंने साझा किया है। ”

ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन के सदस्य लॉर्ड किंग का कहना था कि, “मैं इस कार्यक्रम को देख कर इतना अभिभूत हूं कि मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी तक तो हमें हिन्दी ले जाना ही है, अब मेरी पीढ़ी के लोगों को भी हिन्दी पढ़ना और लिखना सीख लेना चाहिये।‘’ उन्होंने हिन्दी और पंजाबी भाषा को रोमन लिपि में लिखने पर चिंता जताई।

काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने विकास कुमार झा के उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हिन्दी में शोध करके लिखने की परम्परा विकसित नहीं हो पाई है। विकास कुमार झा ने गहरा शोध करने के बाद मैकलुस्कीेगंज को लिखा है। शायद यह उपन्यास इस परम्परा को स्थापित करने में सफल हो पाए। सन् 1911 में ब्रिटिश सरकार ने एंग्लो-इंडियन रेस को मान्यता दी थी और आज 2011 में यानि कि ठीक सौ साल बाद हम यहां ब्रिटिश संसद में भारत के एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव मैकलुस्कीगंज के जीवन पर आधारित उपन्यास को सम्मानित कर रहे हैं। ”

साउथहॉल से लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने कहा कि “ब्रिटेन में कथा यू.के. द्वारा चलाई गई मुहिम से हिन्दी को ब्रिटेन में पांव जमाने में सहायता मिलेगी। जिस प्रकार ब्रिटेन में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को यहां ब्रिटिश संसद में सम्मानित किया जाता है, उससे हमारे स्थानीय लेखकों का उत्साह बढ़ेगा और भारतीय पाठकों को ब्रिटेन में रचे जा रहे साहित्य को आंकने का अवसर मिलेगा।”

कथा यू.के. के महासचिव कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने मैकलुस्कीगंज एवं तलाश उपन्यासों की चयन प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि ब्रिटेन की युवा पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ओर आकर्षित करने के लिये वे शैलेन्द्र और साहिर लुधियानवी जैसे फ़िल्मी साहित्यकारों पर बनाए गये अपने पॉवर पॉइन्ट प्रेज़ेन्टेशन को लेकर ब्रिटेन के भिन्न भिन्न शहरों में लेकर जाएंगे। उन्होंने चिन्ता जताई कि भारत में भी युवा पीढ़ी हिन्दी साहित्य से दूर होती दिखाई दे रही है।

कथा यू.के. के नव-निर्वाचित अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने कहा कि उन्हें ब्रिटेन में हिन्दी के भविष्य की इतनी चिंता नहीं जितनी कि भारत की युवा पीढ़ी को लेकर है। उनका मानना था कि यह सम्मान भाषा का सम्मान है। भाषा एक दीये की तरह है और कथा यूके यह दीया ब्रिटेन में जलाए हुए है। इस दीये की रौशनी ब्रिटेन की संसद के माध्यम से पूरी दुनियां में फैलेगी।

भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा ने कहा, “मैकलुस्कीगंज अद्भुत भाषा में लिखा एक ऐसा आंचलिक उपन्यास है जो कि वैश्विक उपन्यास की अनुभूति देता है। उपन्यास का मुख्य मुद्दा एंग्लो-इंडियन समाज का दर्द है, मगर उपन्यास उससे कहीं ऊंचा उठकर पूरे विश्व के दर्द को प्रस्तुत करता है। मैकलुस्कीगंज जन्म से एक उपन्यास है और कर्म से एक शोध ग्रन्थ। इस उपन्यास में झारखण्ड की जनजातियों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है। ”

नीना पॉल के उपन्यास तलाश पर अपना लेख पढ़ते हुए नॉटिंघम की कवियत्री जय वर्मा ने कहा कि, “तलाश के पात्रों में प्रेम जीवन का अहम् हिस्सा है। जीवन के संघर्ष को एक चुनौती समझ कर वे एक कदम आगे चलते हैं और दो कदम पीछे हटते प्रतीत होते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हर पात्र को किसी न किसी की निरंतर तलाश है। प्यार को एक बंदिश न मानकर त्याग और क़ुर्बानी की झलक इनमें दिखायी पड़ती है। ”

नीना पॉल ने कथा यू.के. के निर्णायक मण्डल को धन्यवाद देते हुए कहा, “कि उपन्यास मेरे नज़रों में कल्पना, जज़्बात और भावनाओं का संगम है। कभी कभी लेखनी का दिल भी इतना भावुक हो उठता है कि लिखने को मजबूर कर देता है। शायद यही कारण है कि मेरी कहानियों को भावनापूर्ण कहा जाता है। बिना भावनाओं के क़लम चलती भी तो नहीं है। ”

नीना पॉल का मानपत्र मुंबई से पधारीं मधु अरोड़ा ने पढ़ा तो विकास कुमार झा का मानपत्र पढ़ा दीप्ति शर्मा ने। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित किये गये प्रवासी संसार के कहानी विशेषांक (अतिथि संपादक – तेजेन्द्र शर्मा) की प्रतियां संपादक राकेश पाण्डे ने मंचासीन प्रमुख अतिथियों की दीं।

कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्रीमती सूरी, श्री आसिफ़ इब्राहिम (मंत्री समन्वय), राकेश शर्मा (उप-सचिव हिन्दी), आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), गौरीशंकर (उप-निदेशक नेहरू सेन्टर), मॉस्को से लुडमिला खोखलोवा और बॉरिस ज़ाख़ारीन, भारत से परमानंद पांचाल, कृष्ण दत्त पालीवाल, केशरी नाथ त्रिपाठी, दाऊजी गुप्त, ओंकारेश्वर पाण्डेय, राकेश पाण्डेय (संपादक – प्रवासी संसार), गगन शर्मा, रूही सिंह, डा. फ़रीदा, डा. भारद्वाज, पूर्व पद्मानंद साहित्य सम्मान विजेता मोहन राणा, उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, काउंसलर के.सी. मोहन, श्याम नारायण पाण्डेय, शिखा वार्षणेय, अरुणा अजितसरिया, प्रो.अमीन मुग़ल, सरोज श्रीवास्तव, राकेश दुबे, पद्मेश गुप्त, इंदर स्याल एवं सोहन राही आदि ने भाग लिया।

सोमवार, 20 जून 2011

शैलेन्द्र– एक नई दुनिया का सपना - तेजेन्द्र शर्मा

लंदन – 18 जून, 2011, शैलेन्द्र एक नई दुनिया का सपना देखते हैं। उन्हें अपने वर्तमान से शिकायतें ज़रूर हैं मगर अंग्रेज़ी के कवि शैली की तरह वे भी सोचते हैं कि इक नया ज़माना ज़रूर आएगा। फ़िल्म बूट पॉलिश में शैलेन्द्र लिखते हैं “आने वाली दुनियां में सबके सर पर ताज होगा / ना भूखों की भीड़ होगी ना दुःखों का राज होगा / बदलेगा ज़माना ये सितारों पे लिखा है।”

और यह सब वे बच्चों के मुंह से कहलवाते हैं - बूट पॉलिश करके पेट पालने वाले बच्चे जिन्हें “भीख में जो मोती मिले, वो भी हम ना लेंगे / ज़िन्दगी के आंसुओं की माला पहनेंगे।” यह कहना था प्रसिद्ध कथाकार एवं कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा का। वे नेहरू सेंटर, लंदन, एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स एवं कथा यू.के. द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम आम आदमी की पीड़ा का कवि - शैलेन्द्र में अपनी बात कह रहे थे।

तेजेन्द्र शर्मा का मानना है कि शैलेन्द्र क्योंकि एक प्रगतिशील कवि थे, उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी भावनाओं को फ़िल्मों के चरित्रों, परिस्थितियों, और अपने गीतों के माध्यम से प्रेषित किया। वे इस मामले में भाग्यशाली भी थे कि उन्हें राज कपूर, शंकर जयकिशन, हसरत जयपुरी, ख़्वाजा अहमद अब्बास और मुकेश जैसी टीम मिली। अब्बास की कहानी और थीम, राज कपूर का निर्देशन और अभिनय और शंकर जयकिशन के संगीत के माध्यम से शैलेन्द्र गंभीर से गंभीर मसले पर भी सरल शब्दों में गहरी बात कह जाते थे।

जिस देश में गंगा बहती है फ़िल्म के एक गीत में शैलेन्द्र गीतकार की परिभाषा देते हैं, “काम नये नित गीत बनाना / गीत बना के जहां को सुनाना / कोई ना मिले तो अकेले में गाना।” तो वहीं पतिता में यह भी बता देते हैं कि “हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं / जब हद से गुज़र जाती है ख़ुशी, आंसू भी निकलते आते हैं।”

तेजेन्द्र ने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि कथाकार भीष्म साहनी का मानना था कि शैलेन्द्र के हिन्दी फ़िल्मों के जुड़ने से फ़िल्मी गीत समृद्ध होंगे और उनमें साहित्य का पुट जुड़ जाएगा। वहीं गुलज़ार का कहना है, “बिना शक़ शैलेन्द्र को हिन्दी सिनेमा का आज तक का सबसे बड़ा लिरिसिस्ट कहा जा सकता है। उनके गीतों को खुरच कर देखें तो आपको सतह के नीचे दबे नए अर्थ प्राप्त होंगे. उनके एक ही गीत में न जाने कितने गहरे अर्थ छिपे होते हैं।”

शैलेन्द्र को मिले सम्मानों के बारे में तेजेन्द्र शर्मा ने कहा, “हालांकि शैलेन्द्र ने अपना बेहतरीन काम आर.के. प्रोडक्शन्स के लिये किया, मगर उन्हें कभी उन गीतों के लिये सम्मान नहीं मिला। उन्हें तीन फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिले यह मेरा दीवानापन है (यहूदी), सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी (अनाड़ी), मैं गाऊं तुम सो जाओ (ब्रह्मचारी)। उनका कहना था कि इससे ज़ाहिर होता है कि उस ज़माने में गीत लेखकों की गुणवत्ता कितनी ऊंचे स्तर की रही होगी। शायद उसे भारतीय फ़िल्मी गीत लेखन का सुनहरा युग कहा जा सकता है जब शैलेन्द्र, साहिर, शकील, कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, राजेन्द्र कृष्ण, जांनिसार अख़्तर, राजा मेंहदी अली ख़ान, भरत व्यास, नरेन्द्र शर्मा, पण्डित प्रदीप, और हसरत जयपुरी जैसे लोग हिन्दी फ़िल्मों के लिये गीत लिख रहे थे। उस समय की प्रतिस्पर्धा सकारात्मक थी, जलन से भरपूर नहीं। हर गीतकार दूसरे से बेहतर लिखने का प्रयास करता था।

तेजेन्द्र शर्मा के अनुसार शैलेन्द्र, शंकर जयकिशन और राज कपूर की महानतम उपलब्धि श्री 420 है। इसके गीतों की विविधता और आम आदमी के दर्द की समझ शैलेन्द्र के बोलों के माध्यम से हमारी शिराओं में दौड़ने लगती है। “छोटे से घर में ग़रीब का बेटा / मैं भी हूं मां के नसीब का बेटा / रंजो ग़म बचपन के साथी / आंधियों में जले दीपक बाती / भूख ने है बड़े प्यार से पाला।” इस फ़िल्म में मुड़ मुड़ के ना देख, प्यार हुआ इक़रार हुआ, मेरा जूता है जापानी जैसे गीत एक अनूठी उपलब्धि हैं।

बचपन में ही अपनी मां को एक हादसे में खो चुके शैलेन्द्र पूरी तरह से नास्तिक थे। मगर फ़िल्मों के लिये वे “भय भंजना वन्दना सुन हमारी” (बसन्त बहार), “ना मैं धन चाहूं, ना रतन चाहूं” (काला बाज़ार), “कहां जा रहा है तू ऐ जाने वाले” (सीमा), जागो मोहन प्यारे (जागते रहो) जैसे भजन भी लिख सकते थे। उनका लिखा हुआ राखी का गीत आज भी हर रक्षाबंधन पर सुनाई देता है, “भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना।”

शैलेन्द्र ने अपना अधिकतर काम शंकर जयकिशन के लिये किया। मगर सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी, रौशन और सी. रामचन्द्र के लिये भी गीत लिखे। शैलेन्द्र के लेखन में वर्तमान जीवन के प्रति आक्रोश अवश्य है मगर मायूसी नहीं। विद्रोह है, क्रांति है, हालात को समझने की कूवत है मगर निराशा नहीं है – वे कहते हैं तूं ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत पे यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर ।

अपने एक घन्टे तीस मिनट लम्बे पॉवर पॉइण्ट प्रेज़ेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने जिस देश में गंगा बहती है, अनाड़ी, पतिता, संगम, श्री 420, जंगली, बूट पॉलिश, गाईड, काला बाज़ार, छोटी बहन, जागते रहो, छोटी छोटी बातें, आदि फ़िल्मों के गीत स्क्रीन पर दिखाए।

कार्यक्रम की शुरूआत में कथा यूके के फ़ाउण्डर ट्रस्टी सिने स्टार नवीन निश्चल को श्रद्धांजलि दी गई। नवीन निश्चल का हाल ही में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। उनकी फ़िल्म बुड्ढा मिल गया का गीत “रात कली इक ख़्वाब में आई.. ” उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप दिखाया गया। मंच पर श्री कैलाश बुधवार का कथा यू.के. के नये अध्यक्ष के रूप में स्वागत किया गया। धन्यवाद ज्ञापन नेहरू सेंटर की निदेशिका मोनिका मोहता ने दिया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री विरेन्द्र शर्मा एवं काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी के अतिरिक्त श्री आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), श्री जितेन्द्र कुमार (भारतीय उच्चायोग), गौरी शंकर (उप-निदेशक, नेहरू सेंटर), कैलाश बुधवार, उषा राजे सक्सेना, के.बी.एल. सक्सेना, असमा सूत्तरवाला, रुकैया गोकल, अब्बास गोकल, वेद मोहला, अरुणा अजितसरिया, उर्मिला भारद्वाज, आलमआरा, निखिल गौर, दीप्ति शर्मा आदि शामिल थे।

रिपोर्ट - शिखा वार्षेणय, लंदन से

शुक्रवार, 13 मई 2011

श्री कैलाश बुधवार कथा यू.के. के अध्यक्ष

कथा यू.के. को यह घोषणा करते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारे पथ प्रदर्शक श्री कैलाश बुधवार (भूतपूर्व अध्यक्ष – बीबीसी रेडियो, वर्ल्ड सर्विस हिन्दी एवं तमिल) ने हमारी संस्था के अध्यक्ष का पद स्वीकार कर लिया है।

कैलाश जी 8 मई 2011 से हमारे अध्यक्ष होंगे।

पृथ्वी थियेटर के ज़माने से मंच से जुड़े कैलाश जी करीब 35 वर्षों तक बीबीसी रेडियो से जुड़े रहे। वे कविता और कहानी भी लिखते हैं। हमें विश्वास है कि कैलाश जी के हमारे साथ जुड़ने से कथा यू.के. को नए आयाम हासिल करने में सफलता मिलेगी।


तेजेन्द्र शर्मा
महासचिव (कथा यू.के.)

मंगलवार, 10 मई 2011

रिश्तों की नई परिभाषा देती कहानियां

(बैठे हुए बाएं से – श्रीमती विनोदिनी बुधवार, मोहसिना जीलानी, नीना पॉल, अरुणा अजितसरिया, काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, पद्मजा जी, मुज्जन ज़ुबैरी। खड़े हुए बाएं से– श्री आसिफ़ जीलानी, कैलाश बुधवार (अध्यक्ष – कथा यू.के.) प्रो. अमीन मुग़ल, प्रो. हबीब अहमद ज़ुबैरी, डा. इस्लाम बोस, तेजेन्द्र शर्मा (महासचिव – कथा यू.के.), आनंद कुमार हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी, श्री एस. के धामी।

कथा यू.के. द्वारा लंदन के उपनगर एजवेअर में आयोजित कथा गोष्ठी में काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने अपनी कहानी मन की सांकल एवं लेस्टर की कथाकार नीना पॉल ने अपनी कहानी आख़री गीत का पाठ किया। कथा यू.के. के महासचिव एवं प्रतिष्ठित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने कहानियों एवं कहानीकारों का परिचय देते हुए कहा कि इन दोनों कहानियों ने मानवीय रिश्तों की कड़ी पड़ताल करते हुए रिश्तों की एक नई परिभाषा लिखी है। जहां नीना पॉल ने अपनी कहानी में मंटो जैसा ट्विस्ट देते हुए कहानी में पिता पुत्री के संबंधों की व्याख्या की है वहीं ज़कीया ज़ुबैरी ने एक बहुत ही कम्पलैक्स थीम को पूरी महारथ के साथ पन्नों पर उतारा है। ज़कीया ज़ुबैरी ने अपनी कहानी में कहानीपन बरक़रार रखते हुए स्थितियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है।

नीना पॉल की कहानी आख़री गीत पिता द्वारा अपने परिवार को छोड़ जाने के बाद पुत्री के दिल में पिता के प्रति नकारात्मक भावनाओं का अंबार भर जाता है। किन हालात में पुत्री का हृदय परिवर्तन होता है और ग़लतफ़हमियां किस ट्विस्ट से दूर होती हैं। यही कहानी का सार है। भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा के अनुसार कहानी में यूनिवर्सल अपील के संवाद हैं।  कैलाश बुधवार का मानना था कि कहानी रोचक है, बांधती है, और इसके पात्र व दृश्य स्वाभाविक एवं सजीव हैं। किन्तु पुत्री का पिता के प्रति अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हो जाता है, कहानी नहीं बता पाती।
आनंद कुमार के अनुसार कहानी में पिता पुत्री की संवादहीनता की स्थिति बहुत गहराई से दिखाई गई है। परिवर्तन बहुत सूक्ष्म ढंग से दिखाया गया है। एस.के.धामी को कहानी की भाषा और बिंब बहुत पसन्द आए। अरुणा अजितसरिया के अनुसार कहानी के अंत का संकेत बहुत कलात्मकता से दिया गया है। संबंधों की जटिलता की गुत्थियों को कहानी खोलती है और संपूर्ण रूप से कहानी सफल है। ज़कीया ज़ुबैरी के अनुसार कहानी की कई परतें हैं। कहानी की भाषा कवितामई है और कहानी भीतर तक उतरने की क्षमता रखती है। अध्यक्ष पद से बोलते हुए प्रो. अमीन मुग़ल ने कहा कि कहानी की ज़बान बोलचाल की ज़बान हे। पिता पुत्री में दो तरह के रिश्ता सामने आता है – एक अणुवांशिक और दूसरा कला के माध्यम से। कहानी का अंत कहानी में सघन ऊर्जा भर देता है।
ज़कीया ज़ुबैरी की कहानी मन की साँकल मां और बेटे के संबंधों पर आधारित एक कम्पलेक्स कहानी है। बचपन में बेटे के लिये मार खाने वाली मां आज अपने ही बेटे के हाथों झिंझोड़ी जा चुकी है। उसके बीमार बदन पर नील उभर रहे हैं। दोनों के संबंध उस कगार पर पहुंच गये हैं कि मां के मन में डर बैठ गया है कि बेटा शायद रात को सोते हुए उसका कत्ल ही न कर बैठे। वह उठती है और कमरे की सांकल लगा देती है। सांकल एक ख़ूबसूरत बिंब की तरह उभर कर आती है।

कैलाश बुधवार का मानना था कि कहानी स्तब्धकारी है। मानवीय संवेदनाएं हमें झिंझोड़ देती हैं। जैसे माइक्रोस्कोप लगा कर लेखिका ने रिश्तों को हमारे सामने उकेर कर रख दिया है। कहानी भाषा, प्रवाह, स्ट्रक्चर सभी में सफल है। जिल, नीरा और पति का चित्रण भी मुख्य पात्रों की ही तरह सजीव है। पद्मजा जी का मानना था कि इस कहानी से उबरने में उन्हें समय लगेगा। कहानी में यथार्थ का चित्रण है जो कि सजीव भी है और वास्तविक भी। साहित्य के लिये सवाल खड़े करना बहुत ज़रूरी है और यह कहानी सवाल खड़े करती है। आसिफ़ जीलानी का कहना था कि बीच का बच्चा हमेशा एक डिफ़िकल्ट बच्चा होता है। जिस तरह ज़कीया ज़ुबैरी ने नारी के मन का दर्द दिखाया है, वह केवल एक नारी ही दिखा सकती थी। कहानी मनोवैज्ञानिक स्तर पर रिश्तों की पड़ताल करती है।

हॉलैण्ड से पधारी पंजाबी साहित्यकार अमरज्योति ने मां और पुत्र के संबंधों के विषय में बात  करते हुए कहा कि कहानी की यात्रा महत्वपूर्ण है। प्याज़ से निकले आंसुओं का धनिये के बीज से इलाज करने वाला पुत्र अपनी मां की आंखें दर्द के आंसुओं से भर देता है। रिश्तों की प्रस्तुति लगभग महान है। आंनद कुमार का कहना था कि मां बेटे के संबंधों को बहुत ख़ूबसूरती से उकेरा गया है। वहीं दीप्ति शर्मा का कहना था कि कहानी में दर्द का सटीक चित्रण है मगर आवश्यक था कि मां अपने अधिकार की घोषणा करती और पुत्र को उसका सही स्थान बता देती। एस.के.धामी को लगा जैसे कि वे ब्रिटेन के किसी भी एशियन घर की फ़िल्म देख रहे हों। जो वे अख़बारों में पढ़ते हैं, लोगों से बातों में सुनते हैं, वह सब यह कहानी बहुत खूबसूरती से दिखाती है।

अरुणा अजितसरिया का मानना था कि कहानी में तीन पीढ़ियों का दर्द है – सास, मां और जिल यानि कि बहू। यह देशकाल के बाहर की कहानी है। ज़कीया ज़ुबैरी को एक सशक्त कहानी के लिये बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह एक नारी के आंतरिक दर्द की कहानी है। हम सीमा के दर्द को समझ सकते हैं। देवी पारेख को लगा कि ऐसी कहानी केवल एक मां ही लिख सकती है। प्रो. अमीन मुग़ल का कहना था कि यह मां और पुत्र के संबंधों की एक ख़ौफ़नाक कहानी है। सांकल का बिंब इस कहानी का सबसे सबल पक्ष है। यह कहानी पति पत्नी और मां पुत्र के संबंधों से कहीं आगे बढ़ कर दो लिंगों की संगतता (कॉम्पेटेबिलिटी) पर प्रश्न उठाती है।  उन्हें सांकल का बिंब सीधा इबसन के नाटक के चरित्र नोरा तक ले गया जब वह दरवाज़ा बन्द करती है तो लगता है कि पूरे युरोप की महिलाओं ने दरवाज़ा बन्द कर दिया हो। कहानी अपने भीतर एक निर्दयी सच लिये है। कहानी का स्टाइल, टोन, बातचीत का अंदाज़ सभी कहानी को उच्च श्रेणी की कहानी बनाते हैं।

गोष्ठी को सफल बनाने के लिये प्रो. अमीन मुग़ल, कैलाश बुधवार (अध्यक्ष – कथा यू.के.), सुश्री पद्मजा (भारतीय उच्चायोग), आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी – भारतीय उच्चायोग), एस.के. धामी (भारतीय उच्चायोग), आसिफ़ जीलानी (बीबीसी रेडियो), प्रो. हबीब ज़ुबैरी, मोहसिना जीलानी, देवी पारेख, सुरेन्द्र कुमार, ओम कटारिया, परी कटारिया, पायल सुर्वे (लूटन), डा. अमर ज्योति (पंजाबी साहित्यकार), डा. बोस आदि शामिल थे। कार्यक्रम के मेज़बान थे अरुणा एवं नंद अजितसरिया। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया।

-- दीप्ति शर्मा

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

“भारतीय प्रेरक वक्ता (मोटिवेशनल स्पीकर) का लंदन के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में सम्मान”

(मिनोचर पटेल को कथा यू.के. ग्लोबल एक्सिलेंस सम्मान प्रदान करते हुए लॉर्ड किंग। बाएं से तेजेन्द्र शर्मा, दीप्ति शर्मा, लॉर्ड तरसेम किंग, काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, मिनोचर पटेल एवं ग्रेग हीटन, मैनिजिंग डायरेक्टर – नैटवैस्ट बैंक)

(लंदन – 15 अप्रैल 2011) “दुर्भाग्यवश हमे अप्रसन्न या दुःखी रहने की आदत हो गई है। हमारा दिमाग़ एक बन्दर की तरह है, जिसे जो सिखाया जाता है, सीख जाता है। अधिकतर लोगों को दूसरों को दुखी देख कर प्रसन्नता का अहसास होता है। याद रखिये जब तक हम जीवित हैं हमारे पास मुस्कुराने का विकल्प मौजूद है। मृत्यु के बाद तो एक स्थाई दुःख का भाव हमारे चेहरे पर छाने ही वाला है।” यह कहना था भारत के प्रतिष्ठित प्रेरक वक्ता श्री मिनोचर पटेल का। अवसर था लंदन के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में कथा यूके द्वारा उन्हें कथा यू..के. ग्लोबल एक्सिलेंस सम्मान देने का। उन्हें यह सम्मान लॉर्ड तरसेम किंग ने महत्वपूर्ण लोगों की उपस्थिति में प्रदान किया।

प्रसन्नता कैसे हासिल की जा सकती है – यही बता रहे थे मिनोचर पटेल अपने एक घंटे के सुरूचिपूर्ण वक्तव्य में। लगातार मुस्कुराते और हँसते श्रोताओं को मिनोचर पटेल ने प्रसन्न रहने के लिये 6 गुरूमंत्र बताए। उनका कहना था, “संतुलन; नकारत्मकता का त्याग; अनासक्त आसक्ति; ऐसे जियो जैसे कि आज आख़री दिन है; न्यूनतम आशा रखना और एक अच्छा इन्सान बनने का प्रयास करने में ही प्रसन्न रहने की कुंजी छिपी है।

काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में मिनोचर पटेल का स्वागत करते हुए कहा, “आज के तनाव एवं चिंतायुक्त समय में प्रसन्न रह पाना बहुत कठिन हो गया है। हम परेशान और दुखी रहने के लिये सौ तिकड़में करते हैं मगर हमने ख़ुश रहने के साधारण तरीक़े नहीं सीखे हैं। यद्यपि कथा यू.के. विश्व पटल पर हिन्दी साहित्य को स्थापित करने के लिये कटिबद्ध है और इस ओर लगातार प्रयास करती है। हमारा आज का कार्यक्रम निश्चित रूप से एक नई दिशा में एक नया क़दम है। मुझे पूरा विश्वास है कि आज का कार्यक्रम हमें ख़ुशी प्रदान करेगा, आपको ख़ुशी प्रदान करेगा और इस कार्यक्रम के बाद आप जिस जिस से मिलेंगे, उन्हें भी ख़ुशी देगा।”

नेटवेस्ट बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर (रिटेल) श्री ग्रेग हीटन ने मिनोचर पटेल के 6 गुरू मंत्रों की तारीफ़ करते हुए कहा कि अपने कार्यालय के वातावरण को सौहार्दपूर्ण बनाने के लिये इन गुरू मंत्रों का पालन करना ज़रूरी है।

कथा यू.के. की उपसचिव दीप्ति शर्मा का कहना था, “प्रसन्नता की ख़ासियत यह है कि जब व्यक्ति प्रसन्न होता है तो यह उसके शरीर, मन और आत्मा से प्रेषित होती है। यह एक ऐसी सकारात्मक भावना है जो कि इन्सान के भीतरी व्यक्तित्व का अनावरण करती है।”

अध्यक्ष पद से बोलते हुए लॉर्ड किंग ने जीवन में प्रसन्नता के महत्व पर ज़ोर देते हुए मिनोचर पटेल को धन्यवाद दिया कि उन्होने अपने विचारों को श्रोताओं के साथ साझी किया। उन्होंने कथा यू.के. के साथ अपने पुराने रिश्तों को याद करते हुए कहा कि भविष्य में भी कथा यू.के. यूं ही समुदाय से जुड़े काम करते रहेगी। उन्होंने कथा यूके को पूरे सहयोग का आश्वासन भी दिया।

कथा यूके के महासचिव ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए नेहरू सेंटर की निदेशिका श्रीमती मोनिका मोहता को विशेष धन्यवाद दिया जिन्होंने इस कार्यक्रम के आयोजन में मुख्य भूमिका निभाई।

कार्यक्रम में मौजूद लोगों में विशेष रूप से बैंक अधिकारी शामिल थे – नेटवेस्ट बैंक के ग्रेग हीटन, स्टुअर्ट ऑल्ड्रिच, शैरन रॉबिन्सन, तामेर सैंसर एवं अब्दुल ख़ान; हबाब बैंक ए.जी. ज़्यूरिख़ के नय्यर ज़ैदी, हसन ज़िया, ख़ुर्शीद सिद्दीक़ि एवं मेसम अली; स्टेट बैंक से अजय कालरा; भारतीय उच्चायोग से श्रीमती पद्मजा; बीबीसी हिन्दी के भूतपूर्व अध्यक्ष कैलाश बुधवार; जी.एल.ए. लंदन के सदस्य मुराद क़ुरैशी; काउंसलर के.सी. मोहन, काउंसलर सुनील चोपड़ा; बिज़नस समुदाय से हातिम सुत्तरवाला, असमा सुत्तरवाला, सक़ीना सुत्तरवाला, अब्बास गोकल, रुकैया गोकल; शिक्षाविद फ़िल जेकमैन; साहित्यकार उषा राजे सक्सेना; डा. किशन उपाध्याय, के.बी.एल. सक्सेना, राखाल साहा, इंदर स्याल, दयाल शर्मा, इस्माइल चुनारा एवं अरुणा अजितसरिया।

- तेजेन्द्र शर्मा

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

१७वां अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान घोषित।

कथा (यू. के.) के महा-सचिव एवं प्रतिष्ठित कथाकार श्री तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन से सूचित किया है कि वर्ष 2011 के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान पत्रकार कथाकार श्री विकास कुमार झा को उनके (राजकमल प्रकाशन से 2010) में प्रकाशित उपन्यास मैकलुस्कीगंज पर देने का निर्णय लिया गया है। यह उपन्यास दुनियां के एक अकेले एंगलो-इंडियन ग्राम की महागाथा है। इस सम्मान के अन्तर्गत दिल्ली-लंदन-दिल्ली का आने-जाने का हवाई यात्रा का टिकट एअरपोर्ट टैक्स़, इंगलैंड के लिए वीसा शुल्क़, एक शील्ड, शॉल, तथा लंदन के खास-खास दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होंगे। यह सम्मान श्री विकास कुमार झा को लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में 27 जून 2011 की शाम को एक भव्य आयोजन में प्रदान किया जायेगा। सम्मान समारोह में भारत और विदेशों में रचे जा रहे साहित्या पर गंभीर चिंतन भी किया जायेगा।

इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना संभावनाशील कथा लेखिका एवं कवयित्री इंदु शर्मा की स्मृति में की गयी थी। इंदु शर्मा का कैंसर से लड़ते हुए अल्प आयु में ही निधन हो गया था। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान चित्रा मुद्गल, संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूति नारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असग़र वजाहत, महुआ माजी, नासिरा शर्मा, भगवान दास मोरवाल एवं हृषिकेश सुलभ को प्रदान किया जा चुका है।

७ अक्टूबर 1963 को जन्मे विकास कुमार झा ने सोशियॉलोजी में एम.ए. की डिग्री हासिल की है। वे रविवार, आउटलुक, एवं माया जैसी पत्रिकाओं के संपादन विभाग से जुड़े रहे। आजकल वे राष्ट्रीय प्रसंग पत्रिका के संपादक के रूप में कार्यरत हैं। वे हिन्दी एवं अंग्रेज़ी में समान रूप से लिखते रहे हैं। सम्मानित उपन्यास के अतिरिक्त उनका कविता संग्रह इस बारिश में, उपन्यास भोग, निबन्ध संग्रह – परिचय पत्र एवं स्वतंत्र भारत का राजनीतिक इतिहास – सत्ता के सूत्रधार प्रकाशित हो चुके हैं। वे टेलिविज़न पर ऐंकर के रूप में भी काम कर चुके हैं।

इस कार्यक्रम के दौरान भारत एवं विदेशों में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य के बीच के रिश्तों पर गंभीर चर्चा होगी।

वर्ष 2011 के लिए पद्मानन्द साहित्य सम्मान इस बार लेस्टर निवासी कथाकार एवं ग़ज़लकार नीना पॉल को उनके उपन्यास तलाश (अयन प्रकाशन) के लिये दिया जा रहा है। अम्बाला (भारत) में जन्मी नीना पॉल ने एम.ए., बी.एड. की डिग्रियों के अतिरिक्त संगीत की भी बाक़ायदा शिक्षा ली है। सम्मानित उपन्यास के अतिरिक्त उनके पांच ग़ज़ल संग्रह कसक, नयामत, अंजुमन, चश्म-ए-ख़्वादीदा, मुलाक़ातों का सफ़र और एक उपन्यास रिहाई प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी ग़ज़लों का एक ऑडियो सी.डी. कसक के नाम से भी जारी हो चुका है।

इससे पूर्व ब्रिटेन के प्रतिष्ठित हिन्दी लेखकों क्रमश: डॉ सत्येन्द श्रीवास्तव, दिव्या माथुर, नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, डा. अचला शर्मा, उषा राजे सक्से्ना, गोविंद शर्मा, डा. गौतम सचदेव, उषा वर्मा, मोहन राणा, महेन्द्र दवेसर एवं कादम्बरी मेहरा को पद्मानन्द साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।

कथा यू.के. परिवार उन सभी लेखकों, पत्रकारों, संपादकों मित्रों और शुभचिंतकों का हार्दिक आभार मानते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है जिन्होंने इस वर्ष के पुरस्कार चयन के लिए लेखकों के नाम सुझा कर हमारा मार्गदर्शन किया।

मंगलवार, 22 मार्च 2011

कथा यू.के. को फ़्रेड्रिक पिन्कॉट सम्मान


(महामहिम श्री नलिन सूरी कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा को पुरस्कार की धनराशि प्रदान करते हुए। साथ हैं श्रीमती ज़कीया ज़ुबैरी (संरक्षक) एवं दीप्ति शर्मा, उपसचिव।)
लंदन – 20 मार्च 2011, ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त महामहिम श्री नलिन सूरी ने कथा यू.के. को हिन्दी साहित्य एवं भाषा के प्रचार प्रसार के लिये वर्ष 2010 का फ़्रेड्रिक पिन्कॉट सम्मान प्रदान करते हुए उनके कार्यक्रमों की भूरि भूरि प्रशंसा की।

सम्मान ग्रहण करते हुए तेजेन्द्र शर्मा (महासचिव – कथा यू.के.) ने उच्चायोग को धन्यवाद दिया कि कथा यू.के. द्वारा हिन्दी साहित्य को विश्व पटल पर स्थापित करने के लिये किये जा रहे काम को सराहना मिली है। उन्होंने अम्बेडकर हॉल में उपस्थित मेहमानों को बताया कि कथा यू.के. हर वर्ष ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स एवं हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में भारतीय साहित्य को स्थापित करने के लिये अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान एवं पद्मानंद साहित्य सम्मान का आयोजन करती है।

तेजेन्द्र शर्मा ने आगे कहा कि पिछले वर्ष कथा यू.के. ने टोरोंटो (कनाडा) में एक हिन्दी कहानी की कार्यशाला का आयोजन किया था जबकि इसी वर्ष फ़रवरी में डी.ए.वी. कॉलेज यमुना नगर के साथ मिल कर भारत में तीन दिवसीय प्रवासी कहानी सम्मेलन का भी आयोजन किया था। कथा यू.के. समय समय पर हिन्दी सिनेमा से जुड़े कार्यक्रमों का भी आयोजन करती रही है।

उन्होंने आगे सूचना दी कि आगामी 14 अप्रैल 2011 को कथा यू.के. हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है जिसमे भारत के प्रमुख मोटिवेशनल स्पीकर श्री मिनोचर पटेल श्रोताओं से बात करेंगे। उनके भाषण का मुख्य मुद्दा होगा- हैपिनेस दि इंडियन वे। उन्होंने भारतीय उच्चायोग, आई.सी.सी.आर एव् नेहरू सेन्टर का निरंतर समर्थन के लिये धन्यवाद किया।

इस कार्यक्रम में उषा राजे सक्सेना को हरिवंशराय बच्च्न सम्मान, स्वर्गीय महावीर शर्मा को हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान (पत्रकारिता – मरणोपरांत), एवं एश्वर्ज कुमार को जॉन गिलक्रिस्ट सम्मान (अध्यापक) भी प्रदान किये गये।

कार्यक्रम का आयोजन भारतीय उच्चायोग लंदन में किया गया। उप-उच्चायुक्त श्री प्रसाद एवं मंत्री संस्कृति श्रीमति मोनिका मोहता मंच पर आसीन थे। हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री आनंद कुमार ने संचालन किया।

सोमवार, 7 मार्च 2011

“ऐ भाई ज़रा देख के चलो... से शुरू हुआ नया हिन्दी फ़िल्मी मुहावरा” – तेजेन्द्र शर्मा


हिंदी फ़िल्मी गीतों में हिंदी - यह विषय था ४ मार्च की संध्या को हुए उस रोचक आयोजन का जिसे नेहरु सेंटर में कथा यू के, एशियन कम्युनिटी आर्ट्स और नेहरु सेंटर के सौजन्य से आयोजित किया गया था।
सुन्दर पुराने, नए हिंदी गीतों से भरी इस शाम पर एक शानदार पॉवर-पॉइंट प्रेजेंटेशन दिया कथा यू के .के महासचिव श्री तेजेंद्र शर्मा ने। इस खूबसूरत शाम का आगाज़ किया नेहरु सेंटर की निदेशक मोनिका मोहता जी ने. फिर हुआ शुरू हिंदी गीतों का सुन्दर सफ़र। इस आयोजन का मुख्य आधार यह बताना था कि हिंदी फिल्मो में हिंदी कविता की शुरुआत कैसे हुई और वह किन रास्तों से गुजर कर कहाँ तक पहुंची।

तेजेन्द्र शर्मा ने अपने प्रेजेंटेशन के माध्यम से कहा कि " पुराने समय में हिंदी गीतों को लिखने वाले जैसे मजरूह सुल्तानपुरी, डी. एन. मधोक, राजेन्द्र कृष्ण, साहिर, हसरत, कैफ़ी आज़मी आदि मूलत: उर्दू में लिखा करते थे और किसी ख़ास विषय या आयोजन पर ही हिंदी का प्रयोग किया करते थे। दरअसल यह लोग हिन्दी और पंजाबी भी उर्दू लिपि में लिखते थे।
फ़िल्मी गीतों में हिन्दी शब्दावली का प्रयोग तभी होता यदि फ़िल्म क्लासिकल संगीत पर आधारित होती या फिर गांव के जीवन पर। इसी तरह भजन या त्यौहारों के गीतो में में ही हिंदी का प्रयोग किया जाता था। उस समय की चित्रलेखा, आम्रपाली, झनक झनक पायल बाजे के गीत, जैसी फ़िल्मों में और अन्य फ़िल्मों के भजन तथा होली के गीतों में हिन्दी सुनाई देती।

आगे बोलते हुए तेजेन्द्र शर्मा जी ने कहा कि उस समय सभी गीतों में वही निश्चित स्थाई और अंतरे की परंपरा रहती थी जिससे कि गीतकार ऊबने लगे थे .और पहली बार लैला मजनू में शक़ील बदायुनी ने एक सीधी नज़्म लिखी - चल दिया कारवां. लुट गये हम यहां तुम वहां..... ठीक इसी तरह कैफ़ी ने फ़िल्म हक़ीकत में – मैं यह सोच कर उसके दर से उठा था... और डी. एन. मधोक ने तस्वीर में - दुनियां बनाने वाले ने जब चांद बनाया.... जैसे नग़मों में स्थाई और अंतरे को विदाई देने का प्रयास किया।

कवि प्रदीप, नरेन्द्र शर्मा, भरत व्यास, इन्दीवर शैलेन्द्र, नीरज आदि गीतकारों ने - सत्यम शिवम सुन्दरम, रजनी गंधा फूल.. आदि बेहतरीन हिंदी गीत हिंदी फिल्मो को दिए। परन्तु उनके गीत भी उर्दू नग़मों की ही तरह स्थाई और अंतरे में बन्धे रहते। यहां तक कि हिंदी का प्रयोग गानों में हिन्दी का मज़ाक उड़ाने के लिये भी किया जाता था एक सुन्दर हिंदी के गीत का कॉमेडी की तरह फिल्मीकरण करके उसका मजाक सा बना दिया जाता था - यदि आप हमें आदेश करे तो प्रेम का हम श्री गणेश करें....एक ऐसा ही गीत था जिसे कुछ अलग तरह फिल्माया जाता तो शायद इसका रूप ही अलग होता।

यह कहना अनुचित न होगा कि वर्तमान हिन्दी फ़िल्मी गीतों की शुरूआत हमें राज कपूर की फ़िल्म मेरा नाम जोकर तक ले जाती है। इस फ़िल्म के लिये कवि नीरज ने एक कविता लिखी जिसका संगीत शंकर जयकिशन ने बनाया था - ए भाई जरा देख के चलो.....और इस गीत ने हिंदी गीतों की परिभाषा बदल कर रख दी। उसके बाद आया गुलज़ार का - मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है ...और हिंदी गीतों में हिंदी कविता का नया रूप चल पड़ा। आज गुलज़ार,जावेद अख्तर,समीर, फैज़ अनवर,प्रसून जोशी जैसे गीतकार बिना स्थाई अन्तर वाले बेहतरीन गीत लिख रहे हैं और युवा पीढी उसे पूरे मन से सराह रही है।


फिर भी कभी कभी सुनने को मिलता है कि आज के गीतों में पुराने गीतों सी बात नहीं ..वह इसलिए कि हम गीत सुनते हैं, समझते नहीं. आज -फिल्म राजनीति का मेरे पिया मोसे बोलत नाहीं, रॉकेट सिंह का ख़्वाबों को... , तारे जमीं पर का माँ....आदि ऐसे कितने ही गीत आज लिखे जा रहे हैं जिनमें हिंदी कविता का बेहतरीन रूप देखने को मिलता है यहाँ तक कि दबंग जैसी निहायत ही व्यावसायिक फिल्म में भी हिन्दी मुहावरों से युक्त गीत देखने को मिलते हैं।

तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि आज के समय में गहरे अर्थ वाले कवितामय गीत लिखे जा रहे हैं और गुलज़ार ,जावेद अख्तर जैसे गीतकार युवा गीतकारों और भावों को पूरी टक्कर दे रहे हैं .बस जरुरत है गीतों को सुनने की समझने की।

पूरी शाम बेहतरीन गीतों से सजी हुई थी और श्रोता भाव विभोर से होकर उन गीतों का ना सिर्फ आनंद ले रहे थे बल्कि उसके सफ़र में भी हमराह हो रहे थे. उस पर हिंदी गीतों के सफ़र के साथी रहे, तेजेन्द्र शर्मा के अपने कुछ निजी और रोचक अनुभवों ने सभी श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। कार्यक्रम में नैन सो नैन (झनक झनक पायल बाजे), मन तड़पत हरि दर्शन को आज (बैजू बावरा), अरे जा रे हट नटखट.. (नवरंग), संसार से भागे फिरते हो (चित्रलेखा), प्रिय प्राणेश्वरी.. यदि आप हमें आदेश करें...(हम तुम और वो), ऐ भाई ज़रा देख के चलो... (मेरा नाम जोकर), इकतारा इकतारा (वेक अप सिड), मां... (तारे ज़मीन पर), पंखों को समेट कहीं रखने दो.... (रॉकेट सिंह), मोरे पिया मोसे बोले नाहीं (राजनीति), उड़ दबंग... (दबंग) आदि गीतों को स्क्रीन पर दिखाया गया।
इस बेहद खूबसूरत शाम का समापन एशियन कम्युनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने वहां उपस्थित सभी आम और खास मेहमानों का धन्यवाद करके किया।

इस रंगीन और खूबसूरत गीतों और जानकारी से भरी शाम में मोनिका मोहता (निदेशक-नेहरू सेंटर), काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, सुश्री पद्मजा (फ़र्स्ट सेक्रेटरी – प्रेस एवं सूचना, भारतीय उच्चायोग), श्री आनंद कुमार (हिन्दी अधिकारी – भारतीय उच्चायोग), कैलाश बुधवार (पूर्व बी बी सी हिंदी प्रमुख ), प्रो. अमीन मुग़ल, डा. नज़रुल इस्लाम बोस, अरुणा अजितसरिया, सुरेन्द्र कुमार, दिव्या माथुर, दीप्ति शर्मा, अब्बास एवं रुकैया गोकल आदि सहित लन्दन के बहुत से गण्यमान्य व्यक्ति एवं संगीत प्रेमी उपस्थित थे...

- शिखा वार्ष्णेय

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

प्रवासी साहित्य को आरक्षण की जरुरत नहीं: तेजेंद्र शर्मा

“प्रवासी साहित्य को पाउंड में न तौलकर उसकी आलोचना भी होनी चाहिए, ताकि उनका साहित्य और ज़्यादा निखर कर सामने आ सके।“ डी.ए.वी. कॉलेज फ़ॉर गर्ल्ज़, यमुनानगर; हरियाणा और कथा यू.के. ; लंदन के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय; 10-12 फ़रवरी, 2011 अन्तरराष्रीय य संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में ब्रिटिश लेबर पार्टी की काउंसलर तथा कहानीकार ज़कीया ज़ुबैरी ने अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेज फ़ॉर गर्ल्ज़ की प्रिंसिपल सुषमा आर्य के साथ मिल कर कथा यू.के. के पिछले 16 वर्षों के कार्यक्रमों की एक प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया।

मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कथाकार एवं ‘हंस’ के संपादक राजेन्द्र यादव का कहना था कि प्रवास का दर्द झेलना आज के दौर में मनुष्य की नियति है। यह दर्द कोई विदेश में जाकर झेलता है तो ढेर सारे लोग ऐसे हैं, जिन्हें देश के अंदर ही यह दंश झेलना पड़ता है। उन्होंने आशंका जताई कि अगर प्रवासियों का बहुत ज्यादा जुड़ाव अपनी जड़ों से होगा तो इससे साहित्य का विकास सही तरीके से नहीं हो सकेगा। विदेशों में जो लोग साहित्य की रचना कर रहे हैं, वे हमेशा दोहरी पहचान में बंधे रहते हैं जिस कारण वे न तो यहां की और न ही वहां की जिन्दगी में हस्ताक्षेप कर पाते हैं।


इस अवसर पर कथा यू.के.; लंदन के महासचिव और ‘क़ब्र का मुनाफ़ा’ जैसी चर्चित कहानी के लेखक सुप्रतिष्ठित कहानीकार तेजेंद्र शर्मा की पीड़ा थी कि विदेश में लिखे गए साहित्य को प्रवासी साहित्य का आरक्षण देकर मुख्य धारा के लेखकों में उन्हें शामिल नहीं किया जाता। उनका मानना है कि इस तरह विदेशों में लिखे जा रहे हिन्दी साहित्य को हाशिये पर धकेल दिया जाएगा।

इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. गोपेश्वर सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि प्रवासी साहित्य एक स्थापित साहित्य है जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। प्रवासी साहित्य के ज़रिए हिंदी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। भाषा बदलती ज़रुर है लेकिन भ्रष्ट नहीं होती। डी.ए.वी. कॉलेज फ़ॉर गर्ल्ज़ की प्राचार्या डा. सुषमा आर्य ने कहा कि प्रवासी साहित्यकारों का भारतीय समाज के साथ जो रिश्ता होना चाहिए, वह किसी कारणवश नहीं बन पा रहा है। संगोष्ठी के संयोजक पत्रकार अजित राय ने कहा कि प्रवासी भारतीय साहित्य के प्रसार में मीडिया का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है।

देश और विदेशों में रह रहे लेखकों ने विभिन्न सत्रों में आयोजित प्रवासी हिंदी साहित्य पर विचारोतेजक चर्चा की। अबूधाबी से आए कहानीकार कृष्ण बिहारी ने कहा कि साहित्य तो साहित्य होता है चाहे वह विदेश में बैठकर लिखा गया हो या फिर देश में। भाषा तो अभिव्यक्ति का एक माध्यम है जो लोगों के दिल में बसती है। हमें प्रवासी साहित्यकार कहकर संबोधित न करें। बर्मिंघम से आए डा. कृष्ण कुमार ने कहा कि प्रवासी साहित्कारों ने शोध करके जिस साहित्य की रचना की है, वह अतुलनीय है। कनाडा से आईं ‘वसुधा’ की संपादक स्नेह ठाकुर का मानना था कि हिंदी के साथ कलम का ही नहीं अपितु दिल का रिश्ता भी है।

प्रवासी रचनाकारों की शिकायत भारतीय प्रकाशकों से भी कुछ कम नहीं थी कि उनकी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए एक ओर पैसे की मांग की जाती है वहीं दूसरी ओर हिंदी के प्रकाशक उनकी रचनाओं को प्रकाशित करने में वैसी दिलचस्पी नहीं दिखाते, जैसी कि वे भारत में रह रहे रचनाकारों की रचनाओं को प्रकाशित करने में दिखाते हैं। जिसे इस गोष्ठी में शिरकत कर रहे तीन प्रकाशकों - महेश भारद्वाज; सामायिक, ललित शर्मा; शिल्पायन और अजय कुमार; मेधा ने पैसे लेकर पुस्तक छापने की बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया। इस संगोष्ठी में प्रवासी रचनाकारों की रचनाओं को लेकर हिंदी के लेखकों, आलोचकों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी के पहले सत्र, जो ‘जड़े देशभक्ति, भूमंडलीकरण और प्रवासी हिंदी कथा साहित्य’ पर केन्द्रित था, में मुख्य वक्तव्य देते हुए सुपरिचित आलोचक और ‘पुस्तक वार्ता’ के संपादक भारत भारद्वाज ने कहा कि विदेश में लिखे जा रहे हिंदी साहित्य को प्रवासी साहित्य की संज्ञा देना भ्रामक है।
ऐसी स्थिति में संपूर्ण आधुनिक हिंदी साहित्य को भी प्रवासी साहित्य कहना होगा क्योंकि तमाम लेखक अपनी जड़ों से कटे हुए हैं। प्रतिष्ठित उपन्यासकार भगवान दास मोरवाल ने ज़कीया ज़ुबैरी की कहानियों पर चर्चा करते हुए कहा कि ज़कीया की रचनाओं का आस्वाद लेने के लिए सिर्फ पाठक होना होगा वहीं कहानीकार हरि भटनागर ने कहा कि ज़कीया की कहानियां पढ़ते हुए लगता है कि मानो तंगहाली की कहानी मजे ले-लेकर सुनाई जा रही हो। दिव्या माथुर की कहानियों पर बोलते हुए अरुण आदित्य ने ‘सौ सुनार’ का जिक्र करते हुए कहा कि यह अपनी तरह की ख़ास कहानी है जिसका पूरा कथानक मुहावरों और लोकोक्तियों के आधार पर बढ़ता है। अजय नावरिया ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों को निर्मल वर्मा की कहानियों से आगे की कहानी कहा जिनमें ब्रिटेन की जीवन की सजीव झलक मिलती है।

मनोज श्रीवास्तव का कहना था कि प्रवासी लेखन दायित्व बोध से भरा हुआ है। यह साहित्य पर्यटन के लिये नहीं रचा जाता। महेन्द्र मिश्र का मानना था कि एक-दो रचनाओं के आधार पर रचनाकारों पर कोई राय नहीं बनाई जा सकती। संजीव, प्रेम जनमेजय, वैभव सिंह, महेश दर्पण, अजय नावरिया, निर्मला भुराड़िया, नीरजा माधव, पंकज सुबीर, शंभु गुप्त, अमरीक सिंह दीप, महेश दर्पण, विजय शर्मा, मधु अरोड़ा, जय वर्मा (नॉटिंघम) आदि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।

इस सम्मेलन में ब्रिटेन से अचला शर्मा, दिव्या माथुर, डा. कृष्ण कुमार, नीना पॉल, अरुण सभरवाल, चित्रा कुमार, ज़कीया ज़ुबैरी, तेजेन्द्र शर्मा; कनाडा से स्नेह ठाकुर; शारजाह से पूर्णिमा वर्मन; एवं आबुधाबी से कृष्ण बिहारी आदि ने भाग लिया। इस तीन दिवसीय संगोष्ठी में चार पुस्तकों - भगवान दास मोरवाल का उपन्यास ‘रेत’ का उर्दू अनुवाद, लंदन से आईं कहानीकार दिव्या माथुर की ‘2050 और अन्य कहानियां’, कृष्ण बिहारी के कहानी संग्रह ‘स्वेत श्याम रतनार’ एवं तेजेंद्र शर्मा के अनुवादित पंजाबी संग्रह ‘कल फेर आंवीं’ - का लोकापर्ण भी हुआ। डी.ए.वी. कॉलेज की छात्राओं द्वारा तेजेंद्र शर्मा की कहानी ‘पासपोर्ट का रंग’ और ज़कीया ज़ुबैरी की कहानी ‘मारिया’ का नाट्य मंचन किया गया। संभवतः यह पहला अवसर है जब भारत में प्रवासी साहित्य पर सार्थक और विचारोतेजक अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसकी अनुगॅूज देर तक ही नहीं, दूर तक भी सुनाई पड़ेगी।
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-साधना अग्रवाल

संपर्कः 4-सी, उना एन्क्लेव, मयूर विहार फ़ेज़-1, दिल्ली-110091. मो. 9891349058

“साहित्य लेखकों को एक झण्डे तले लाता है।” – काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी।

“ आज जबकि चारों ओर आतंक और दुश्मनी का माहौल दिखाई दे रहा है, साहित्य का महत्व कई गुना अधिक बढ़ गया है। इस प्रकार की कथा-गोष्ठियों के आयोजन से हमारा प्रयास है कि हम हिन्दी और उर्दू के लेखकों के बीच एक बेहतर समझ पैदा कर सकें। आम आदमी के बीच मित्रता एवं शांति पैदा करने में लेखक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।” यह कहना था काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी का और मौक़ा था कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स द्वारा मिल-हिल, लंदन में आयोजित साझा कथागोष्ठी जिसमें उर्दू की वरिष्ठ कहानीकार सफ़िया सिद्दीक़ि एवं हिन्दी के महत्वपूर्ण कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने प्रबुद्ध श्रोताओं के सामने अपनी अपनी कहानी का पाठ किया।


कथागोष्ठी में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्रीमती मोनिका मोहता (निदेशक – नेहरू सेन्टर), श्रीमती पद्मजा (काउंसिलर – प्रेस एवं सूचना, भारतीय उच्चायोग), श्री आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), प्रो. मुग़ल अमीन, श्री कैलाश बुधवार, श्री एवं श्रीमती अजितसरिया, डा. नज़रुल इस्लाम बोस, परिमल दयाल, फ़हीम अख़्तर एवं सुरेन्द्र कुमार शामिल थे।

वरिष्ठ उर्दू कहानीकार सफ़िया सिद्दीक़ि ने अपनी कहानी 'माली बाबा' का पाठ किया जिसमें दो मालियों की तुलना की गई थी – एक जो पुराने भारत के किसी ज़मीदार घराने का माली है और दूसरा जो कि पूर्वी युरोप से ब्रिटेन में आकर बसने वाला प्रवासी है। तुलना दोनों के जीने के ढंग से शुरू होती है और उनके बच्चों के बनने वाले भविष्य पर आकर रुकती है। सफ़िया जी अपनी कहानी के अंत में कहती हैं कि काश! हमारे मुल्क़ के माली को भी जीवन में यहां के माली जैसे अवसर मिलें ।

कैलाश बुधवार कहानी से खासे प्रभावित दिखे। उनका कहना था कि यह कहानी हमें यह अहसास करवाती है कि अपने वतन में काम करने वालों को नीचा माना जाता है – वहां के बड़े लोग काम नहीं करते। यहां काम करने वालों की इज्ज़त होती है। परिमल दयाल के अनुसार कहानी के विवरण एवं भाषा कहीं भी बोरियत का अहसास नहीं होने देते। फ़हीम अख़्तर को लगा कि मालियों के चरित्र जैसे जीवन से ही उठा लिये गये थे। पद्मजा जी का कहना था कि कहानी का विन्यास बहुत अनूठा है। दोनों मालियों का जीवन समानांतर चलता है और कहीं कोई झटका नहीं लगता। आनंद कुमार को कहानी की भाषा की आंचलिकता ने बहुत प्रभावित किया। प्रो. मुग़ल अमीन के अनुसार कहानी में एक अंतर्प्रवाह है। यह केवल सीधी रेखा में नहीं चलती। लेखिका ने दिखाया है कि भारत के माली की भी ज़मींदारी सिस्टम में जितनी देखभाल संभव थी – हो रही थी। कहानी श्रम के महत्व को रेखांकित करती है।

तेजेन्द्र शर्मा की कहानी 'फ़्रेम से बाहर' एक बच्ची की कहानी है जिसे मां बाप बहुत प्यार करते हैं। मगर उसके जुड़वां भाई हो जाने के बाद उसके जीवन में जैसे एक तूफ़ान सा आ जाता है। मां बाप द्वारा उपेक्षा और कच्ची उम्र में ही होस्टल भेजा जाना नेहा के व्यक्तित्व में संपूर्ण परिवर्तन ले आते हैं। नेहा पर इस हादसे का कुछ ऐसा असर होता है कि उसका विवाह जैसी संस्था पर से विश्वास ही उठ जाता है। वह तय कर लेती है कि वह कभी भी बच्चे पैदा नहीं करेगी।

सभी ने करतल ध्वनि से तेजेन्द्र शर्मा के कहानी पाठ करने के अनूठे ढंग की सराहना की और विशेष तौर पर नेहा के जीवन में आए भावनात्मक तूफ़ान का चित्रण श्रोताओं के दिलों को छू गया। अरुणा अजितसरिया ने अपनी नम आंखों से कहा कि कहानी के थीम को इतने मर्मस्पर्शी ढंग से चित्रित किया गया है कि यह प्रत्येक घर की कहानी बन गई है। मुझे लगा जैसे मैं शायद अपनी कहानी सुन रही हूं। ज़कीया ज़ुबैरी का मानना था कि कहानी थीम, स्टाइल, घटनाक्रम, विन्यास, एवं निष्पादन में अनूठी है। लेखक अपने पाठक को नेहा की भावनाओं को समझने के लिये मज़बूर कर देता है। परिमल दयाल, सुरेन्द्र कुमार, फ़हीम अख़्तर एवं आनंद कुमार नेहा के दर्द और कहानी के नयेपन से प्रभावित दिखे। पद्मजा जी ने कहानी को थोड़ा विस्तार से विश्लेषित करते हुए कहा कि नेहा के दर्द को इतनी संवेदनशीलता से चित्रित किया गया है कि पाठक पर इसका गहरा असर होता है। नेहा और उसके माता पिता के बीच संवादहीनता एक ग्रंथि के रूप में उभर कर सामने आती है। जब नेहा का विवाह में विश्वास ख़त्म हो जाता है तो कहानी सामाजिक संरचना को बदलने का कारण बन जाती है। कैलाश बुधवार ने कहानी के चरित्र चित्रण एवं घटनाक्रम की तारीफ़ करते हुए कहा कि कहानी पाठक को बांध लेती है। किन्तु उन्हें लगा कि नेहा का विश्वास विवाह जैसी संस्था से उठने के लिये जो कारण दिखाये गये हैं वे काफ़ी नहीं हैं। यदि नेहा की मां को सौतेली दिखाया जाता तो बेहतर होता। प्रो. मुग़ल अमीन ने अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए कहा, “यह कहानी सहोदर भाई बहनों के बीच प्रतिद्वन्दिता की अद्भुत कहानी है और दिखाती है कि यह किस तरह हाथों से निकल कर विक्षिप्तता की हद तक पहुंच जाती है और रिश्तों में दरार पैदा हो जाती है। यह एक शाश्वत थीम है । लेखक को चाहिये था कि इस थीम को और अधिक विस्तार से प्रस्तुत करता।” ज़कीया ज़ुबैरी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही गोष्‍ठी समाप्‍त हुई।
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